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________________ करने पर जो एक भाग प्राप्त हो उतना भरतक्षेत्र का विस्तार है जो कि पूर्वोक्त पाँच सौ छब्बीस सही छह बटे उन्नीस (526 6/19) योजन होता है। धातकीखण्ड का वर्णन द्विर्धातकीखण्डे। (33) In the Dhatikikhanda (which is the next region after salt oceans dout समुद्र the number of Ksetras, mountains, rivers, lakes etc. is)double of that in fasta Jambudvipa. धातकी खण्ड में क्षेत्र तथा पर्वत आदि जम्बूद्वीप से दने हैं। अपने सिरे से लवणोद और कालोदको स्पर्श करनेवाले और दक्षिण से उत्तर तक लम्बे इष्वाकार नामक दो पर्वतों से विभक्त होकर धातकी खण्ड द्वीप के दो भाग हो जाते हैं- पूर्व धात की खण्ड और पश्चिम धातकी खण्ड। इन पूर्व और पश्चिम दोनों खण्डों के मध्य में दो मन्दर अर्थात् मेरू पर्वत हैं। इन दोनों के दोनों ओर भरत आदि क्षेत्र और हिमवान् आदि पर्वत हैं। इस प्रकार दो भरत दो हिमवान् इत्यादि रूप से जम्बूद्वीप से धातकीखण्ड द्वीप में दूनी संख्या जाननी चाहिए। जम्बूद्वीप में हिमवान् आदि पर्वतोंका जो विस्तार है धातकीखण्ड द्वीप में हिमवान् आदि पर्वतोंका उससे दूना विस्तार है। यहाँ पर जम्बूद्वीप में अपने परिवार वृक्षों समेत जम्बूवृक्ष होने से इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप पड़ा है। इसी प्रकार धातकी खण्ड द्वीप यह संज्ञा श्री धातकी अर्थात् आँवले के वृक्ष के कारण इस का नाम धात की खंड द्वीप पड़ा है। पुष्कर द्वीप का वर्णन - पुष्कराः च। (34) In the nearest half of puskaradvipa also the number of Ksetras etc. is double of that in Jambudvipa. पुष्करार्द्ध में उतने ही हैं। .. जिस प्रकार धातकीखण्ड द्वीप में हिमवान् आदि का विस्तार कहा है उसी प्रकार पुष्करार्ध में हिमवान् आदि का विस्तार दूना बतलाया है। नाम वे ही हैं। दो इष्वाकार और दो मन्दार पर्वत पहले के समान जानना चाहिए। 217 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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