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________________ उद्वत कर रहे हैं- (1) जम्बूद्वीप (2) लवण समुद्र (3) धातकीखण्ड द्वीप (4) कालोद समुद्र (5) पुष्करवर द्वीप (6) पुष्करवर समुद्र (7) वारूणीवर द्वीप (8) वारूणीवर समुद्र (9) क्षीरवर द्वीप (10) क्षीरवर समुद्र (11) घृतवर द्वीप (12) घृतवर समुद्र (13) इक्षुवर द्वीप (14) इक्षुवर समुद्र (15) नन्दीश्वर द्वीप (16) नन्दीश्वर समुद्र (17) अरूणवर द्वीप (18) अरूणवर समुद्र इस प्रकार स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त असंख्यात द्वीप, समुद्र जानने चाहिए। द्वीप और समुद्रों का विस्तार और आकार द्विििर्वष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः । (8) The oceans and containents each one have twice the breadth of the one immediately preceding it. वे सभी द्वीप और समुद्र दूने-दूने व्यास वाले पूर्व-पूर्व द्वीप और समुद्र को वेष्टित करने वाले और चूड़ी के आकार वाले हैं। __ प्रथम द्वीप का जो विस्तार है लवण समुद्र का विस्तार उससे दूना है। तथा दूसरे द्वीप का विस्तार इससे दूना है और दूसरे समुद्र का इससे दूना है। इस प्रकार उत्तरोत्तर दूना-दूना विस्तार है। इन द्वीपों के आकार वलयाकृति या गोलाकृति है। इनका आकार त्रिकोण, चतुकोण या पंचकोण नहीं है। इन द्वीप, समुद्रों का अवस्थान यत्र-तत्र अवस्थित नहीं है बल्कि एक को आवृत (घेरे हुए) करके दूसरे को, दूसरे को आवृत्त करके तीसरा है। इसी बात को जतलाने के लिए सूत्रकार ने सूत्र में वलयाकृतय' पद दिया है। जम्बूद्वीप का विस्तार और आकार तन्मध्ये मेरूनाभिवृत्तोयोजनशतसहस्रविषकम्भो जम्बूद्वीपः। (9) In the middle of these concentric oceans and continents, is Jambudvipa which is round like the disc of the sun. In the centre of Jambudvipa like navel in the human body is situated mount meru. Jambudvipa is 1 lac Yojanas in breadth. 196 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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