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तिल-2 करें देह के खंड, असुर भिड़ावें दुष्ट प्रचण्ड। सिन्धु नीरतें प्यास न जाय, तो पण एक न द लहाय॥(12) तीन लोक को नाज जु खाय, मिटै न भूख कणा न लहाय। ये दुख बहुसागरलों सहै, करम जोगते नरगति लहे॥
__(13) परस्परोदीरितदुःखाः। (4) The tortures of hellish beings are produced by them for another. तथा वे परस्पर उत्पन्न किये गये दुःख वाले होते हैं।
नारकी जीव परस्पर महान् दुःख देते रहते हैं। उनका प्रत्येक क्षण लड़ने-झगड़ने में ही व्यतीत होता है। निर्दय होने से कुत्ते के समान एक दूसरे को देखकर नारकियों के क्रोध की उत्पत्ति हो जाती है। जैसे- कुत्ते शाश्वतिक, अकारण, अनादिकाल से होने वाले जातिकृत वैर के कारण निर्दय होकर परस्पर भौंकना, छेदना-भेदना आदि उदीरित (उत्पन्न कराये) दुःख वाले होते हैं, उसी प्रकार नारकी भी मिथ्यादर्शन के उदय से विभंगनाम को प्राप्त भवप्रत्यय अवधिज्ञान के द्वारा दूर से ही दुःख के हेतुओं को जानकर उत्पन्न दुःख की प्रत्यासत्ति (उपस्थिति) से एक-दूसरे को देखने से प्रज्वलित हुई है क्रोध अग्नि जिनकी, ऐसे वे अपने शरीर की विक्रिया से तलवार, वासी, परशु, भिण्डिवाल आदि शस्त्र बनाकर परस्पर देह की घात, छेदन-भेदन-पीड़न आदि के द्वारा उदीरित दुःख वाले होते हैं।
संक्लिष्टासुरोदीरितदुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्याः।(5) .Befare the 4th earth i.e. in the 1st, 2nd and 3rd earths in the hells, the evil-minded celestial beings called Asura Kumaras also give torture to the hellish beings or incite them to torture one another.
और चौथी भूमि से पहले तक वे संक्लिष्ट असुरों के द्वारा उत्पन्न किये गये दुःख वाले भी होते हैं।
पूर्वोपार्जित तीव्र पाप कर्म के उदय से नारकियों को केवल क्षेत्रजनित
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