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________________ परन्तु आहार ऋद्धि सम्पन्न मुनियों को ही होता है। आहारक शरीर धारी को वैक्रियिक शरीर नहीं होता इसके साथ-साथ औदारिक, कार्मण, तैजस शरीर भी होता है। जिससे यह जाना जाता है कि प्रमत्तसंयत के ही आहारक शरीर होता है दूसरे के नहीं। ऐसी व्याप्ति नहीं है कि, प्रमत्तसंयत्त के आहारक शरीर ही होता है, औदारिक आदि नहीं। अर्थात् 'प्रमत्तसंयत के ही आहारक शरीर होता है। इस प्रकार की अवधारणा करने के लिए एवकार है, न कि 'प्रमत्तसंयत के ही आहारक ही होता है। इस अनिष्ट अवधारणा के लिए! जिस समय मुनि आहारक शरीर की रचना करते हैं, उस समय वह प्रमत्तसंयत ही होते है। इन शरीरों में परस्पर संज्ञा, स्वलक्षण, स्वकारण, स्वामित्व, सामर्थ्य, प्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, संख्या , प्रदेश, भाव और अल्पबहुत्व आदि की दृष्टि से भेद भी पाया जाता है(1) संज्ञा - संज्ञा से (नामसे) घट-पट के समान औदारिक आदि शरीर में अन्यत्व है अर्थात् इनके औदारिक आदि नाम पृथक्-पृथक् हैं। (2) लक्षण- इनका स्व लक्षण भी भिन्न-भिन्न है - जैसे स्थूल शरीर औदारिक है। विविध गुण ऋद्धि वाली विक्रिया करने वाला वैक्रियिक शरीर है। दरधिगम सूक्ष्म पदार्थ का निर्णय करने के लिए आहारक शरीर होता है। शंख के समान श्वेत वर्ण वाला तैजस शरीर होता है। वह तैजस शरीर दो प्रकार का है(1) नि:सरणात्मक (2) अनिःसरणात्मक। औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीर के भीतर रहने वाला तथा इन शरीरों की दीप्ति का कारण रौनक देने वाला अनि :सरणात्मक तैजस शरीर है। उग्र चारित्र वाले, अति क्रोधी मुनिराज के जीव प्रदेशसंयुक्त बाहर निकल कर दाह्य (जिस पर क्रोध है उस) को घेर कर अवतिष्ठमान हैं तथा धान्य , हरित, फलादि से परिपूर्ण भूमि स्थाली में हुए शाक आदि को जैसे अग्नि पकाती है वैसे जलाकर भस्म कर देते हैं और उसे पकाकर लौट कर मुनि के शरीर में प्रवेश कर जाता है। यदि अधिक देर. ठहर जाए तो उसे भस्मसात् कर देता है वह नि:सरणात्मक तैजस शरीर है। सभी शरीरों में कारणभूत कर्मसमूह को कार्मण शरीर कहते हैं। यह इनमें 175 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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