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________________ एकान्त से अनादिमान् मान लेने पर भी निर्मोक्ष का प्रसंग आयेगा। यदि एकान्त से सर्वथा तैजस कार्मण शरीर को अनादि मानेंगे तो भी अनिर्मोक्षका प्रसंग आयेगा। क्योंकि जो अनादि है- उसका आकाश के समान अन्त भी नहीं होगा। कार्यकारण सम्बन्ध का अभाव होने से; इसलिये मोक्ष का अभाव हो जाता है। यदि कहो कि अनादि बीज वृक्ष की संतान का अग्नि से सम्बन्ध होने पर अन्त देखा जाता है उसी प्रकार तैजस कार्मण शरीर का भी अन्त हो जायेगा-तब तो एकांत से अनादित्व का अभाव होगा। बीज वृक्ष विशेषापेक्षया आदिमान् है अत: जैसे बीज वृक्ष संतति कथंचित् सादि और कथंचित् अनादि होने से उसकी संतति अग्नि से नष्ट हो जाती है- वैसे ही कार्मण शरीर भी ध्यान- अग्नि से नष्ट हो जाता है। इसलिये साधूक्त किसी प्रकार से तैजस और कार्मण शरीर कथंचित् अनादि हैं- और कथंचित् सादि है। इसी प्रकार गोम्मदृसार में भी कहा गया है कि: पल्लतियं उवहीणं, तेत्तीसंतोमुहुत्त उवहीणं। छावट्ठी कम्मठिदि, बंधुक्कस्सट्ठिदी ताणं॥(252) औदारिक शरीर की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य, वैक्रियिक शरीर की तेतीस सागर, आहारक शरीर की अन्तर्मुहर्त, तैजस शरीर की छयासठ सागर है। कार्मण शरीर की उत्कृष्ट स्थिति उतनी ही समझनी चाहिये जितनी कि कर्मो के स्थितिबंध प्रकरण में बताई गई है। वह सामान्यतया तो सत्तर कोडाकोडी सागर है किन्तु विशेष रूप से ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तराय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोडाकोडी सागर है। मोहनीय की सत्तर कोडाकोडी सागर, नाम, गोत्रकी बीस कोडाकोडी सागर और आयु कर्मकी केवल तेतीस सागर उत्कृष्ट स्थिति है। सर्वस्य (42) The electric and the karmic bodies are always found with all mundane souls. तथा सब संसारी जीवों के होते हैं। - तैजस शरीर एवं कार्मण शरीर सम्पूर्ण संसारी जीव के होते हैं। यह 169 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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