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अनादि सम्बन्धे च । ( 41 )
And their connection i.e. of the electric and the karmic bodies with
the soul is without beginning.
आत्मा के साथ अनादि समबन्ध वाले हैं।
तैजस एवम् कार्मण शरीर अनादि काल से जीव के साथ हैं। ये दोनों शरीर संतान परम्परा की अपेक्षा बीज - वृक्ष न्याय से जीव के साथ अनादि काल से साथ हैं। परन्तु सूत्र में निर्दिष्ट 'च' शब्द से यह ध्वनित होता है कि, ये दोनों शरीर सादि सम्बन्ध की अपेक्षा जीव के साथ सादि - सम्बन्ध है परन्तु अनादि सम्बन्ध नहीं है।
बंध - संतति की अपेक्षा अनादि सम्बन्ध है और विशेषत: बीज - वृक्ष के समान सादि सम्बन्ध है । जैसे वृक्ष बीज से उत्पन्न होता है- तथा वह वृक्ष दूसरे बीज से उत्पन्न हुआ था इस प्रकार बीज और वृक्ष का कार्यकारण संबन्ध सामान्य अपेक्षा अनादि सम्बन्ध है । उस बीज से यह वृक्ष हुआ और इस वृक्ष से यह बीज । इस विशेष की अपेक्षा से सादि है, अर्थात् सन्तति की दृष्टि से बीज वृक्ष अनादि होकर भी तद्बीज और तद्वृक्ष की अपेक्षा सादि है । उसी प्रकार तैजस और कार्मण शरीर के भी पौर्नभाविक निमित्त नैमित्तिक सन्तति की अपेक्षा अनादि है और तत् तत् दृष्टि विशेष की अपेक्षा सादि सम्बन्ध भी है।
एकांत से अनादिमान् ही स्वीकार कर लेने पर र्निनिमित्त होने से नवीन शरीर के सम्बन्ध का अभाव हो जायेगा। जिनके सिद्धान्त में एकांत से तैजस कार्मण शरीर का अनादि सम्बन्ध है- उनके सिद्धान्त में पूर्व में ही आत्यंतिकी शुद्धि को धारण करने वाले जीव के नूतन शरीर का सम्बन्ध ही नहीं हो सकेगाक्योंकि शरीर सम्बन्ध का कोई निमित्त ही नहीं है ।
यदि एकांत से निर्निमित आदि सम्बन्ध माना जायेगा तो मुक्तात्मा के अभाव का प्रसंग आयेगा- क्योंकि जैसे आदि शरीर अकस्मात् सम्बन्ध को प्राप्त होता है वैसे ही मुक्तात्मा के भी आकस्मिक शरीर सम्बन्ध होगा; इसलिये मुक्तात्मा के अभाव का प्रसंग आयेगा ।
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