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________________ सम्मूर्च्छन जन्म किसके होता है ? शेषाणां संमूर्च्छनम् । (35) All the rest i.e. except those born by embroyonic birth and instsaneous rise are born by spontaneous generation शेष सब जीवों का संमूर्च्छन जन्म होता है । गर्भ जन्म जराजु, अण्डज और पोत जीवों का ही होता है। या जरायुज, अण्डज और पोत जीवों के गर्भ जन्म ही होता है। देव और नारकियों के उपपाद जन्म ही होता है। सम्मूर्च्छन जन्म शेष जीवों के ही होता है या शेष जीवों के संमूर्च्छन जन्म ही होता है । एकेन्द्रिय से लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तक तिर्यंचों का नियम से संमूर्च्छन जन्म ही होता है। अन्य जीवों के गर्भ और संमूर्च्छन दोनों होता है। लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों के भी संमूर्च्छन जन्म होता है। चारों तरफ से पुद्गल का इकट्ठा होकर शरीर बनने को संमूर्च्छन कहते हैं। संमूर्च्छन जन्म अन्यत्र स्थानों में होता है। मूर्च्छन म सचित्त, अचित्त, मिश्र तीनों तरह की योनियाँ होती है। संमूर्च्छन जन्म में शीत, ́ उष्ण और मिश्र तीनों योनियाँ होती है। पंचेन्द्रिय संमूर्च्छन जीवों की विकलत्रयों की तरह विवृत्त योनि ही होती है। पंचेन्द्रिय संमूर्च्छन तिर्यंच कर्मभूमियां ही होते हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंच गर्भज तथा संमूर्च्छन ही होते हैं। संमूर्च्छन जीवों के उदाहरण- काई, शैवाल, छत्रक (कुकुरमुक्ता ) अनाज के कीड़े, गोबर आदि में उत्पन्न होने वाले कीड़े। देखने में आते हैं कि शीत ऋतु में सेम की लता एवं पत्ते में शाम तक कीड़े नहीं होते हैं परन्तु सुबह होने पर सैंकड़ो कीडे लता एव पत्ते में हो जाते हैं। यह सब जीव कहाँ से आये ? यह सब उसी वातावरण के कारण वहाँ उत्पन्न हो रहे हैं। इसका मतलब यह नहीं कि उस वातावरण से जीव की उत्पत्ति हुई है परन्तु उस वातावरण में विग्रह गति से अन्य स्थान से आकर जीव जन्म लेते हैं। डार्विन आदि वैज्ञानिक लोग जो रसायनिक प्रक्रिया से जीव की सृष्टि मानते है वह सिद्धान्त शरीर की अपेक्षा एवम् जन्म की अपेक्षा सत्य होते हुए भी अविद्यमान जीव की उत्पत्ति मानना मिथ्या है। क्योंकि रसायनिक तत्व भौतिक है और शरीर भी Jain Education International For Personal & Private Use Only 161 www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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