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गंगदेव (10) सुधर्म- इन सबका काल एक सौ तैरासी (183) वर्ष प्रमाण है। इसके बाद दसपूर्वधर रूप सूर्य फिर नहीं (उदित) रहें।
ग्यारह अंगधारी एवं उनका काल- (1) नक्षत्र, (2) जयपाल, (3) पांडु (4) ध्रुवसेन, (5) कंस ये 5 आचार्य ग्यारह अंगधारी हुए। इनका काल 220 वर्ष हैं। इनके स्वर्गस्थ होने पर फिर अन्य ग्यारह अंग धारक भी नहीं
आचारांगधारी एवं काल - (1) सुभद्र, (2) यशोभद्र, (3) यशोबाहु, (4) लोहार्य ये चारों आचारांगधारी हुए, इनका काल 118 वर्ष है। ये चारों आचार्य आचारांग के अतिरिक्त शेष ग्यारह अंगों और 14 पूर्वो के एक देश के धारक थे। ___गौतम गणधर से लोहार्य पर्यन्त का सम्मिलित काल प्रमाण- इनके स्वर्गस्थ होने पर भरतक्षेत्र में फिर कोई आचाराङ्ग ज्ञान के धारक नहीं हुए है। गौतम मुनि को आदि लेकर (आचार्य लोहार्य पर्यन्त के) सम्पूर्ण काल का प्रमाण 683 वर्ष होता है। . इसके बाद अंग के कुछ अंग के धारी धरसेन हुए। इनसे आचार्य पुष्पदंत एवं भूतबलि अध्ययन करके षट्खण्डागम की रचना की। वर्तमान काल में दिगम्बर जैन परम्परा के अनुसार लिपिबद्ध रूप में यह शास्त्र-रचना सर्वप्रथम थी। इन्होंने प्राकृत भाषा में गद्य रूप में सूत्र की रचना की। इसके बाद गुणधर आचार्य हुए, जिन्होंने कषायपाहुड की रचना की। यह रचना प्राकृत गाथा बद्ध है। गुणधर आचार्य का काल ईसा सम्वत् 57 से लेकर 156 तक संभावित है। इसी परम्परा में आगे जाकर आचार्य पद्मनंदी हुए, जिनका प्रसिद्ध नाम कुन्दकुन्ददेव है। इनका काल संभवतः 127 से लेकर 179 ई. सम्वत् है। बहुश: (सम्भवतः) इनके सुयोग्य शिष्य आचार्य उमास्वामी (उमास्वाति) हुए। इनका काल संभवत: 179 से 220 तक है।
इनका समय नन्दिसंघ की पट्टावलि के अनुसार वीर-निर्माण सम्वत् 571 है, जो कि वि. स. 101 आता है। विद्वज्जनबोधक में अग्रलिखित पद्य है:
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