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________________ स्पर्श, रस और गंध को जानने वाले यह (जू आदि) जीव मनरहित त्रीन्द्रिय जीव हैं। चतुरिन्द्रिय जीव उइंसमसयमक्खियमधुकरिभमरा पतंगमादीया। रूवं रसं च गंधं फासं पुण ते विजाणंति॥(116) स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय के आवरण के क्षयोपशम के कारण तथा श्रोत्रेन्द्रिय के आवरण का उदय तथा मन के आवरण का उदय होने से स्पर्श, रस, गंध और वर्ण को जानने वाले यह (डांस आदि) जीव मनरहित चतुरिन्द्रिय जीव हैं। सुरणरणारयतिरिया वण्णरसफ्फासगंधसद्दण्हु। जलचरथलचरखचरा बलिया पंचेंन्द्रिया जीवा॥(117) स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय,घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रिय के आवरण के क्षयोपशम के कारण मन के आवरण का उदय होने से, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द को जानने वाले जीव मन रहित पंचेन्द्रिय जीव हैं, कुछ (पंचेन्द्रिय जीव) होते हैं जिनके मनके आवरण भी क्षयोपशम होने से संज्ञी है। उनमें देव, मनुष्य और नारकी मनसहित ही होते हैं, तिर्यंच दोनों जाति के (अर्थात् मन रहित तथा मन सहित) होते हैं। इन्द्रियों का विषय क्षेत्र... धणुवीसडदसयकदी, जोयणछादालहीणतिसहस्सा। अट्ठसहस्स धणूणं, विसया दुगुणा असण्णि त्ति॥(168) - गो.सा. . एकेन्द्रिय के स्पर्शनेन्द्रिय का उत्कृष्ट विषय क्षेत्र चार सौ धनुष है। और द्वीन्द्रियादि के वह दूना-दूना होता गया है। अर्थात् द्विन्द्रिय के आठ सौ, त्रीन्द्रिय के सोलह सौ, चतुरिन्द्रिय के बत्तीस सौ, असंज्ञी पंचेन्द्रिय के चौंसठ सौ धनुष स्पर्शनेन्द्रिय का उत्कृष्ट विषय क्षेत्र है। द्वीन्द्रिय के रसनेन्द्रिय का उत्कृष्ट विषय क्षेत्र चौंसठ धनुष है और वह भी त्रीन्द्रियादिक के स्पर्शनेन्द्रिय के विषय क्षेत्र 147 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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