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________________ इन्द्रियों के समान नियत स्थानीय नहीं है, अनवस्थित है अतः मन को इन्द्रियों शामिल नहीं किया गया । मन का व्यापार इन्द्रियों के पूर्व होता है इसलिये भी इन्द्रियों में मन परिगणित नहीं है। चक्षु आदि इन्द्रियों के द्वारा रूपादि विषय के उपयोग से परिणमन के पूर्व ही मानसिक व्यापार हो जाता है क्योंकि शुक्लादि के देखने का इच्छुक प्रथम मानसिक उपयोग करता है कि, मैं रूप को देखता हूँ, उसका स्वाद लेता हूँ इत्यादि । तथा उस मन का बलाधान ( निमित्त) पाकर चक्षु आदि इन्द्रियों के विषय में व्यापार करता है इसलिए मन के अनिन्द्रियत्व है। They are of 2 kinds: (1) द्रव्येन्द्रिय Objective-senses, sense organs; and, (2) भावेन्द्रिय (Subjective- senses, senses faculties. प्रत्येक दो दो प्रकार की हैं। इन्द्रियों के मूल भेद द्विविधानी । (16) पांच इन्द्रियों के दो-दो भेद हो जाते हैं । ( 1 ) द्रव्येन्द्रिय (2) भावेन्द्रिय । द्रव्येन्द्रिय का स्वरूप निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् । ( 17 ) Objective senses or sense- organs (have a two-fold formation:(1) faqf-The organs itself, e.g. the pupil of the eye. (2) उपकरण - Its protecting environment eg the eye-lid etc. निवृत्ति और उपकरण रूप द्रव्येन्द्रिय है । रचना की जाती है - वह निर्वृत्ति कहलाती है। नाम कर्म के द्वारा जिसकी रचना, निष्पादन की जाती है - वह निर्वृत्ति कहलाती है। 138 निर्वृत्ति बाह्य और आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार की हैं। विशुद्ध आत्मप्रदेशों की रचना आभ्यन्तर निर्वृत्ति है । उत्सेधांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण विशुद्ध आत्मप्रदेशों की चक्षुरादि के आकार रूप से रचना आभ्यन्तर निर्वृत्ति है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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