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________________ कुन्थु, चिंउटी, कुम्भी, बिच्छू, बीरबहुटी, घुनका कीड़ा, खटमल, चीलर-लुवा आदि तीन इन्द्रिय जीव हैं। चतुरिन्द्रिय जीवों के नाम मधुपः कीटको दंशमशको मक्षिकास्तथा। वरटी शलभाद्याश्च भवन्ति चतुरिन्द्रियाः॥5॥ भौंरा, उड़ने वाले कीड़े, डांस, मच्छर, मक्खी, वर तथा टिवी आदि चार इन्द्रिय जीव हैं। - पंचेन्द्रिय जीवों के नाम पञ्चेन्द्रियाच माः स्युरिकास्त्रिदिवौकसः। तिर्यञ्चोऽप्युरगा भोगिपरिसर्पचतुष्पदाः॥ (56) मनुष्य, नारकी, देव, तिर्यंच, साँप, फणवाले नाग, सरकने वाले अजगर आदि तथा चौपाये पाँच इन्द्रिय जीव हैं। इन्द्रियों की गणना पञ्चेन्द्रियाणि। (15) The senses are five. इन्द्रियाँ पाँच हैं। .. कोई अन्य मतवादी, पाँच छह और ग्यारह भी इन्द्रियाँ मानते हैं। उनका निराकरण करने के लिए 'इन्द्रियाँ पाँच हैं अधिक नहीं हैं, ऐसा नियम करने के लिए “पाँच" यह शब्द दिया है। 'इन्द्र' आत्मा का लिंग इन्द्रियाँ कहलाती हैं। कर्म परतंत्र होने पर भी आत्मा अनंत ज्ञानादि परमेश्वरत्व शक्ति के योग से इन्द्र व्यपदेश को धारण करने वाला है। स्वयं अर्थ को ग्रहण करने में असमर्थ आत्मा को जो अर्थग्रहण करने में सहायक है- उसको इन्द्रिय कहते हैं। कर्मरूप इन्द्र के द्वारा निर्मित होने से 'इन्द्रियाँ' कहलाती हैं। अथवा स्वकीय कर्म विपाकवश आत्मा देवेन्द्र, मानव, तिर्यच, नरकादि योनियों में इष्टानिष्ट का अनुभव करता है अत: कर्म ही इन्द्र है और इस कर्मरूपी, इन्द्र के द्वारा सृष्ट-रची हुई होने से इन्द्रियाँ कहलाती हैं। अनवस्थान होने से मन इन्द्रिय नहीं है। अर्थ चिंतन में सहायक एवं कर्मकृत होते हुए भी मन चक्षुरादि 137 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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