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है, क्योंकि उपयोग के इन 12 प्रकारों में से जीव के कोई न कोई उपयोग अवश्य रहा करता हैं। साकार उपयोग में कुछ विशेषता:
मदिसुदओहिमणेहि य, सगसगविसये विसेसविण्णाणं।
अंतोमुत्तकालो, उवजोगो सो दु सायारो॥(674) मति श्रुत अवधि और मन : पर्यय इनके द्वारा अपने अपने विषय का अन्तमुहूतकाल पर्यन्त जो विशेषज्ञान होता है उसको ही साकार उपयोग कहते हैं। ____साकार उपयोग के पाँच भेद हैं- मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवल। इनमें से आदि के चार ही उपयोग छद्मस्थ जीवों के होते हैं। उपयोग चेतना का एक परिणमन है। तथा एक वस्तु के ग्रहणरूप चेतना का यह परिणमन है। तथा एक वस्तु के ग्रहण रूप चेतना का यह परिणमन छद्मस्थ जीव के अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्तकाल तक ही रह सकता है। इस साकार उपयोग में यही विशेषता है, कि यह वस्तु के विशेष अंश को ग्रहण करता है। अनाकार उपयोग का स्वरूप
इंदियमणोहिणावा, अत्थे अविसेसिदूणजे गहणं। .. अंतोमुहुत्तकालो, उवजोगो सो अणायारो॥(675)॥
इन्द्रिय, मन और अवधि के द्वारा अन्तर्मुहूर्तकाल तक पदार्थों का जो सामान्य रूप ग्रहण होता है उसको निराकार उपयोग कहते हैं। दर्शन के चार भेद हैं- चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन। इनमें से आदि के तीन दर्शन छद्मस्थ जीवों के होते हैं। नेत्र के द्वारा जो सामान्यावलोकन होता है उसको चक्षुदर्शन कहते हैं। और नेत्र को छोड़कर शेष चार इन्द्रिय तथा मन के द्वारा जो सामान्यावलोकन होता है उसको अचक्षुदर्शन कहते हैं। अवधि ज्ञान के पहले इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना आत्ममात्र से जो रूपी पदार्थ विषयक सामान्यावलोकन होता है उसको अवधिदर्शन कहते हैं। यह दर्शनरूप निराकार उपयोग भी साकार उपयोग की तरह छद्मस्थ जीवों के अधिक से अधिक अन्तर्मुहूत तक होता है। अनाकार उपयोग या दर्शन उपयोग का वर्णन प्रकारान्तर से गोम्मट्टसार में निम्न
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