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________________ attribute of the soul. Thus attentiveness is kind of consciousness. Consciousness is a characteristic of the knower, the soul. वह उपयोग दो प्रकार का है - ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग। ज्ञानोपयोग आठ प्रकार का है और दर्शनोपयोग चार प्रकार का है। जो अन्तरंग और बहिरंग दोनों प्रकार के निमित्त से होता है और चैतन्य . को छोड़कर अन्य द्रव्यों में नहीं रहता है वह 'उपयोग' कहलाता है। वह उपयोग दो प्रकार का है, ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग। ज्ञानोपयोग आठ प्रकार का है: मतिज्ञान, श्रुताज्ञान, अवधिज्ञान, मन: पर्ययज्ञान, केवलज्ञान, मत्यज्ञान, श्रुतज्ञान और विभंगज्ञान। दर्शनोपयोग चार प्रकार का:- चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन। साकार और अनाकार के भेद से इन दोनों उपयोग में भेद है। साकार ज्ञानोपयोग है और अनाकार दर्शनोपयोग। ये दोनों छद्मस्थों के क्रम से होते हैं और कर्म आवरणरहित जीवों के युगपत् होते हैं। यद्यपि दर्शन पहले होता है तो भी श्रेष्ठ होने के कारण सूत्र में ज्ञान को दर्शन से पहले रखा है। नेमीचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती ने गोम्मट्टसार में उपयोग का वर्णन निम्न प्रकार से सविस्तार से किया है- वत्थुणिमित्तं भावो, जादो जीवस्स जोदु उवजोगो। सो दुविहो णायव्वो, सायारो चेव अणायारो॥(672) जीव का जो भाव वस्तु को (ज्ञेय को) ग्रहण करने के लिये प्रवृत होता है उसको उपयोग कहते हैं। इसके दो भेद हैं-- एक साकार (विकल्प) और दूसरा निराकार (निर्विकल्प)। णाणं पंचविहं पि य, अण्णाणतियं च सागरुवजोगो। चदुदंसणमणगारो, सव्वे तल्लक्खणा जीवा॥ (673) पाँच प्रकार का सम्यग्ज्ञान- मति, श्रुत, अवधि, मनः पर्यय तथा केवल और तीन प्रकार का अज्ञान- मिथ्यात्व-कुमति, कुश्रुत, विभंग ये आठ साकार उपयोग के भेद हैं। चार प्रकार का दर्शन चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन अनाकार उपयोग है। यह उपयोग ही सम्पूर्ण जीवों का लक्षण 124 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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