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________________ क्षायिक चारित्र । सूत्र में 'च' शब्द सम्यक्त्व और चारित्र के ग्रहण करने के लिए आया है। ज्ञानावरण कर्म के अत्यन्त क्षय से क्षायिक केवल ज्ञान होता है। इसी प्रकार केवलदर्शन भी होता है। दानान्तराय कर्म के अत्यन्त क्षय से अनन्त प्राणियों के समुदाय का उपकार करने वाला क्षायिक अभयदान होता है। समस्त लाभान्तराय कर्म के क्षय से कवलहार क्रिया से रहित केवलियों के क्षायिक लाभ होता है जिससे उनके शरीर को बल प्रदान करने में कारणभूत, दूसरे मनुष्यों को असाधारण अर्थात् कभी न प्राप्त होने वाले परम शुभ और सूक्ष्म ऐसे अनन्त परमाणु प्रति समय सम्बन्ध को प्राप्त होते हैं । समस्त भोगान्तराय कर्म के क्षय से अतिशय वाले क्षायिक अनन्त भोग का प्रादुर्भाव होता है। जिससे कुसुमवृष्टि आदि आश्चर्य विशेष होते हैं। समस्त उपभोगान्तराय के नष्ट हो जाने से अनन्त क्षायिक उपभोग होता है। जिससे सिंहासन, चामर और तीन छत्र आदि विभूतियाँ होती हैं। वीर्यान्तराय कर्म के अत्यन्त क्षय से क्षायिक अनन्त वीर्य प्रकट होता है। पूर्वोक्त सात प्रकृतियों के अत्यन्त विनाश से क्षायिक सम्यक्त्व होता है। इसी प्रकार क्षायिक चारित्र का स्वरूप समझना चाहिए। क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद ज्ञानाज्ञानदर्शनलब्धयश्चतुस्त्रिपंचभेदाः सम्यक्त्वचरित्रसंयमासंयमाश्च । (5) (The 18 kinds are) 4 kinds of (right) knowledge, 3 wrong knowledge 3 conations, 5 attainments, right belief, conduct and contral, non-control. क्षयोपशमिक भाव के अठारह भेद हैं- चार ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन, पाँच दानादि लब्धियाँ, सम्यक्त्व चारित्र और संयमासंयम । उदय प्राप्त सर्वघाति स्पर्धकों का क्षय होने पर, अनुदय (सत्ता में अवस्थित ) प्राप्त सर्वघाति स्पर्धकों का सदवस्थारूप उपशम होने पर तथा देशघाति स्पर्धकों का उदय होने पर क्षायोपशमिक भाव होता है। स्पर्धक दो प्रकार के हैंसर्वघातिस्पर्धक और देशघातिस्पर्धक । उनमें जब सर्वघातिस्पर्धकों का उदय 114 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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