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(2) क्षायिक:- कर्मों की अत्यन्त निवृत्ति को क्षय कहते हैं। जैसे- जिस जल का मैल नीचे बैठा हो, उसे यदि दूसरे पवित्र पात्र में रख दिया जाय तो जैसे उसमें अत्यंत निर्मलता आ जाती है उसी प्रकार आत्मा से कर्मों की अत्यंत निवृत्ति होने से जो आत्यन्तिक विशुद्धि होती है वह क्षय कहलाता
(3) क्षयोपशमिक:- क्षीणाक्षीण मदशक्ति वाले कोदों के समान उभयात्मक परिणाम को मिश्र भाव कहते हैं। जैसे- जल से प्रक्षालन करने पर कुछ कोदों की मदशक्ति क्षीण हो जाती है और कुछ की अक्षीण। उसी प्रकार यथोक्त क्षय के कारणों से सन्निधान होने पर (परिणामों की निर्मलता से) कर्मों के एक देश क्षय और एक देश कर्मों की शक्ति का उपशम होने पर उभयात्मक मिश्र भाव होता है। (4) औदयिक:- द्रव्यादि के निमित्त के वश से कर्मों के फल की प्राप्ति का नाम उदय है। द्रव्य, क्षेत्र काल और भाव के निमित्त से विपच्चमान कर्मों के फल देने को उदय कहते हैं। (5) पारिणामिक:- द्रव्यात्मक लाभ मात्र हेतु परिणाम है। जिस भाव के द्रव्यात्मक लाभ मात्र ही हेतु होता है अन्य किसी भी कर्म के उपशम आदि की अपेक्षा नहीं है, वह परिणाम कहलाता है।
भावों के भेद द्विनवाष्टदशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् ।(2) (They are) of two nine, eighteen, twenty, one and three kinds respectively. उक्त पांचों भावों के क्रम से दो, नौ, अठारह, इक्कीस और तीन भेद हैं। अर्थात् औपशयिक के दो, क्षायिक के नौ, क्षायोपशमिक के अठारह, औदयिक के इक्कीस और पारिणामिक के तीन भेद होते हैं।
औपशमिक भाव के दो भेद
सम्यक्त्वचारित्रे। (3) (The two kinds are) belief and conduct. औपशमिक सम्यक्त्व Subsidential-right-belief,
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