________________
द्रव्यार्थिकनय के भेद
शुद्धशुद्धार्थसंग्राही त्रिधा द्रव्यार्थिको नयः। नैगमसंग्रहश्चैव व्यवहारश्च संस्मृतः ।।(41)
शुद्ध और अशुद्ध अर्थको ग्रहण करने वाला द्रव्यर्थिकनय तीन प्रकार का माना गया है- (1) नैगम (2) संग्रह और (3) व्यवहार। पर्यायार्थिकनयके भेद और अर्थनय तथा शब्दनय का विभागचतुर्धा पर्यायार्थः स्यादृजु शब्दनमाः परे
उत्तरोत्तरमत्रैषां सूक्ष्मसूक्ष्मार्थभेदता। शब्दः समंभिरूद्वैवंभूतौ ते शब्द भेदगाः ।।(42)
(षट्पटम) चत्वारोऽर्थनया आधास्त्रयः शब्दनयाः परे।
उत्तरोत्तरमत्रैषां सूक्ष्मगोचरता मता॥(43) पर्यायार्थिक नयके चार भेद हैं (1) ऋजुसूत्रनय (2) शब्दनय (3) समभिरूढनय और (4) एवंभूतनय। इन नयों में उत्तरोत्तर अर्थ की सूक्ष्मता रहती है। अथवा प्रारम्भ के चार नय अर्थनय हैं और आगे के तीन नय शब्द नय हैं। इन नयों में भी उत्तरोत्तर विषय की सूक्ष्मतामानी गई हैं। नयों की परस्पर सापेक्षता
एते परस्परापेक्षाः सम्यग्ज्ञानस्य हेतवः। 'निरपेक्षाः पुनः सन्तो मिथ्याज्ञानस्य हेतवः ॥(51)
(पृ.21) .ये नय यदि परस्पर सापेक्ष रहते हैं तो सम्यग्ज्ञान के हेतु होते हैं और निरपेक्ष रहते हैं तो मिथ्याज्ञान के हेतु होते हैं।
109
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org