SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मतिज्ञान चक्षुरादि इन्द्रियों से उत्पन्न होता है और रूपादि को विषय करता है। अत: स्वभावत: वह रूपी द्रव्यों को जानकर भी उनकी कुछ स्थूलपर्यायों को ही जानेगा। श्रुतज्ञान भी प्राय: शब्दनिमित्तक होता है और द्रव्य पर्यायें संख्यात, असंख्यात, अनंत भेदरूप है- अत: वे असंख्यात शब्द पर्यायों को ही कह सकते हैं। कहा भी है “पण्णवणिज्जा भावा अणंत भागो दु अणभिलप्पाणं। पण्णवणिज्जाणं पुण अणंत भागो सुदणिबद्धो"॥ . शब्दों के द्वारा प्रज्ञापनीय पदार्थों से वचनातीत पदार्थ अनंत गुने हैं अर्थात् अनन्तवाँ भाग पदार्थ प्रज्ञापनीय हैं, और जितने प्रज्ञापनीय पदार्थ हैं उसके अनन्तवें भाग पदार्थ श्रुत में निबद्ध होते हैं। अतीन्द्रिय पदार्थों में मतिज्ञान की प्रवृति का अभाव होने से 'सर्वद्रव्य पर्याय' शब्द युक्त नहीं है; ऐसा नहीं कहना क्योंकि मन का विषय सर्वद्रव्य हो सकता है। प्रश्न- अतीन्द्रिय होने से धर्मास्तिकायादि द्रव्यों को मतिज्ञान नहीं जान सकता अत: मतिश्रुत का विषय सर्वद्रव्य निबन्ध है, ऐसा कहना उचित नहीं उत्तर- यद्यपि धर्म, अधर्म, आकाशदि, अरूपी पदार्थ अतीन्द्रिय होने से इन्द्रियका विषय नहीं है तथापि मानस मतिज्ञान का विषय होते हैं - नो इन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशमलब्धि की अपेक्षा मतिज्ञान का धर्मादि द्रव्यों में व्यापार होता है अर्थात् मतिज्ञान धर्मादि द्रव्यों को जानते है, यदि मानसज्ञान से अतीन्द्रिय पदार्थों को नहीं जानते तो अवधिज्ञान के साथ मतिज्ञान का निर्देश करते कि रूपी पदार्थों को ही मतिज्ञान जानता है। अवधिज्ञान का विषय रूपिष्ववधेः। (27) Matter (and embodied soul are the subject matter) of visual knowledge, but not in all their modifications. 96 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy