________________
* पारिभाषिक शब्द-कोष * ४४७ *
चारित्र-अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति (व्यवहार) चारित्र है। स्वरूपरमण निश्चय चारित्र है। यही एक प्रकार से चरणविधि है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और बाह्याभ्यन्तर परिग्रह-त्याग, इनका तीन करण-तीन योग से आचरण करना चारित्र है। समतारूप धर्म चारित्र है, जिसमें सर्वसावधयोगों से विरतिरूप सम्यक्चारित्र, सम्यग्दर्श न-ज्ञानयुक्त होता है, मिथ्याचारित्र इनसे रहित होता है। चारित्र के दो भेद हैं-सरागचारित्र और वीतरागचारित्र। इसी प्रकार अनगारों के चारित्र के ५ प्रकार हैं-सामायिक, छेदोपस्थापनिक, परिहार-विशुद्धि, सूक्ष्म-सम्पराय और यथाख्यातचारित्र। चारित्रधर्म वह है जो मोह-क्षोभरहित समता और शमता से युक्त हो।
चारित्राचार-(I) पापक्रिया से निवृत्तिरूप परिणति। (II) निश्चयचारित्र को लक्ष्य में रखकर व्यवहारचारित्र का निरतिचार आचरण करना। ___ चारित्रमोहनीय-जो बाह्याभ्यन्तर क्रियाओं की निवृत्तिरूप चारित्र को मोहित करता है, वह।
चारित्रविनय-इन्द्रियों और कषायों के प्रसार को रोकना तथा गुप्तियों और समितियों के पालन में प्रयत्नशील रहना।
चार दुर्लभ अंग-मनुष्यत्व, धर्मश्रवण, श्रद्धा और संयम में पराक्रम, ये चार अंग अतिदुर्लभ हैं। ___ चारित्रसंवर-मन-वचन-काया द्वारा इन्द्रियों के गोप्ता, त्रिगुप्ति-परिपालक, समितियों के अप्रमत्त पालक, चारित्रवान् साधु के आनवों का निरोध हो जाने पर नये कर्मों का आम्रव रुकता है, इसका नाम चारित्रसंवर है।
चारित्राराधना-पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्तिरूप १३ प्रकार के चारित्र का भावशुद्धिपूर्वक आचरण करना, तथा इन्द्रिय-असंयम एवं प्राणि-असंयम का परित्याग करना चारित्राराधना है।
चेतना-प्रत्यक्षरूप से वर्तमान पदार्थ के ग्रहण करने का नाम चेतना है। इसे चेतन (सजीव) भी कहते हैं। - चैतन्य-तीनों कालों को विषय करने वाले अनन्त-पर्याय-स्वरूप जीव के स्वरूप का जो अपने क्षयोपशम के अनुसार संवेदन होता है, उसका नाम चैतन्य है।
च्युत-च्यावित-आयुष्यक्षय होने के बाद कर्मोदयवश कदली फल के बिना पके हुए फल के समान जो शरीर स्वयं छूटता है, वह च्युत है, और आयुक्षय से देवता आदि के द्वारा भ्रष्ट कराये गया शरीर च्यावित है, अथवा कदलीघात, विषभक्षण, वेदना या रक्तक्षय आदि से खण्डित हुई आयु के क्षय से नष्ट हुए शरीर का नाम च्यावित शरीर है।
च्यवन-वैमानिक और ज्योतिष्क देवों के मरण को च्यवन कहते हैं। इसे च्युति भी. कहते हैं। च्यवन, उद्वर्तन और मरण, ये समानार्थक शब्द हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org