________________
* ३८४ * कर्मविज्ञान भाग ९ : परिशिष्ट *
अचेलक-निर्वस्त्र, जीर्ण या अल्प सादे वस्त्रधारी।
अचेल-परीषह-वस्त्र की अल्पता जीर्णता या रहितता का कष्ट समभावपूर्वक सहन छठा परीषह।
अचौर्य महाव्रत-त्रिकरण-त्रियोग से चौर्यकर्म का त्यागरूप महाव्रत। अचौर्य अणुव्रत-स्थूलरूप से अदत्तादानविरमणरूप त्याग। अच्युत-बारहवाँ वैमानिक देवलोक; अभ्रष्ट, स्थिर, परमेश्वर, नारायण। अच्छेद्य-जो छिन्न न हो सके, ऐसा। आत्मा का विशेषण। . अयतना-अजयणा, उपयोगरहितता, असावधानी, अविवेक। अजर-जिसे बुढ़ापा न आये। देव। सिद्धों का विशेषण। अजित-जिसे जीता नहीं गया, अपराजित। अजितनाथ-भरतक्षेत्र की प्रचलित चौबीसी में तीसरे तीर्थंकर का नाम। अजीव-जीवरहित। अजीव नामक द्वितीय तत्त्व। जड़-पुद्गल |
अजीवकाय-संयम-अजीव होने पर भी जिन वस्त्र, पात्र, बहुमूल्य पदार्थों से असंय हो, उन्हें ग्रहण न करना।
अजीव क्रिया-अचेतन पुद्गलों का कर्मरूप में परिणत होना।
अटल अवगाहना-आयुकर्म के क्षय से सिद्धों को प्राप्त होने वाला शाश्व स्थिरत्व गुण।
अणु-पुद्गल का अविभागी अंश।
अणिमा अत्यन्त सूक्ष्म शरीर के रूप में विक्रिया की जा सके, ऐसी ऋद्धि। अणुव्रत-हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह, इन स्थूल पापों का त्याग।
अतिक्रम-व्रत के अतिक्रमण = उल्लंघन का मन में विचार आना। इसके साथ ही आगे का कदम है-व्यतिक्रम = व्रत को उल्लंघन करने हेतु साधन जुटाना।
अतिचार-अतिक्रम से आगे का कदम। आंशिक रूप से व्रत का उल्लंघन करनादोष लगाना।
अतिक्रमण-उल्लंघन करना।
अतिक्रान्त-प्रत्याख्यान-पर्युषणा के समय गुरु, वृद्ध, तपस्वी, ग्लान श्रमण की वैयावृत्य आदि करने के कारण जिस स्वीकृत तप को न कर सके, उसे बाद में यथावसर करना। ___अतिथि-संविभागवत-श्रावक का बारहवाँ व्रत, जिसके आने की कोई तिथि, पर्व आदि निश्चित न हो। ऐसे भिक्षाव्रती उत्कृष्ट अतिथि-श्रमण, मध्यम अतिथि- श्रावकवर्ग, जघन्य अतिथि-किसी भी भूखे-प्यासे अनुकम्पापात्र को यथाविधि अपने आहारादि में से नमुक अंश निःस्वार्थभाव से देना।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org