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________________ * विषय-सूची : चतुर्थ भाग * ३१९ * सर्प-जीवन में शुभ अध्यवसाय का फल ७४, अशुभ स्थान में भी शुभ और शुभ स्थान में भी अशुभ अध्यवसाय ७५. अध्यवसाय-परिवर्तन के लिए एक दष्टान्त ७५. निमित्त महत्त्वपूर्ण नहीं. महत्त्वपूर्ण है उपादान ७६, अध्यवसायों के आधार पर जीवन का उदय-अस्त ७६, अध्यवसाय के अनुसार स्थितिबन्ध और रसबन्ध ७८, रत्नत्रयरूप भावधर्म के अध्यवसाय शुद्ध हो ७८। (६) कर्मबन्ध के बीज : राग और द्वेष पृष्ठ ७९ से ९८ तक कर्मरूप विशाल महावृक्ष के बन्ध के बीज : राग और द्वेष ७९, कर्म का बन्ध : हृदय-भूमि पर रागादि का बीजारोपण होने पर ७९, रागादि होने पर ही कर्मबन्ध होता है, केवल क्रियाओं से नहीं ८0, कर्म राग-द्वेष से बँधते हैं; किसी प्रवृत्ति या क्रियापात्र से नहीं ८१, राग और द्वेष : दो प्रकार की बिजली की तरह ८१, प्रियता-अप्रियता राग-द्वेषमयी दृष्टि पर निर्भर ८२, वस्तु या व्यक्ति पर स्वयं द्वारा ही राग-द्वेषारोपण ८२, पिंगला रानी पर पहले राग, फिर द्वेष, फिर विराग ८३, जड़-पदार्थों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं, प्रतिक्रिया व्यक्ति की ओर से ही ८३, राग और द्वेष वस्तु पर निर्भर नहीं, ग्राहक पर निर्भर ८४, रागी-द्वेषी की दृष्टि बदलती रहती है ८४, राग-द्वेष : चरण-संलग्न कण्टक ८५, प्रवृत्यात्मक कर्म के साथ राग-द्वेष का मिश्रण होते ही बन्ध ८५. राग-द्वेष का लक्षण और विश्लेषण ८६, राग और द्वेष : दोनों ही पापकर्म-प्रवर्तक ८६, मोहकर्मवश रागादि भावों के चक्कर में पड़कर किसी भी सजीव-निर्जीव पदार्थ को इष्टानिष्ट मान सकता है ८६, मोहरूपी बीज से राग-द्वेष की उत्पत्ति ८७, राग और द्वेष : दोनों ही आत्मा के लिए बेड़ियाँ ८७, पाँचों इन्द्रियों और मन के विषयों के प्रति राग-द्वेष कैसे और कब? ८८, राग-द्वेष के कारण हिंसापरिग्रहादि और दःख ८९. कामभोगों का सेवन : राग-द्वेष-मोह का उत्तेजक शत्र ८९. विषयों का त्याग शक्या नहीं, राग-द्वेष का त्याग ही इप्ट ९०, राग और द्वेष न करने का व्यापक अर्थ ९१, राग और द्वेष के दायरे में कपाय और नोकषाय का समावेश ९२, लोभादि रागात्मक भी, द्वेषात्मक भी ९३, संसारी प्राणियों में द्विविध चेतना ९३, राग और द्वेष दोनों में से रागभाव छोड़ना अतिदुप्कर ९५, रागान्धता कितनी भयंकर? ९६, रागभाव का सर्वथा त्याग : वीतरागता के लिए अनिवार्य ९६, साम्प्रदायिक कट्टरता : अप्रशस्त रागान्धता का प्रतीक ९७. कामराग, स्नेहराग, दृष्टिराग ९७. प्रशस्त और अप्रशस्त राग ९७, प्रशस्त और अप्रशस्त राग : राग के चार प्रकार ९८, राग कभी शुद्ध नहीं होता : एक चिन्तन ९८। (७) कर्मबन्ध का सर्वाधिक प्रबल कारण : मिथ्यात्व पृष्ठ ९९ से ११९ तक प्रकाश और अन्धकार ९९, अन्धकार को प्रकाश मानने वाले जीव ९९, संसार के सभी प्राणियों से उनकी स्थिति विपरीत और विचित्र १00, मानव-समुदाय में भी अन्धकार को प्रकाश मानने वाले अधिक १00, भावप्रकाश के बदले भावान्धकार में जीने वाले जीव १00, मिथ्यात्व का दूरगामी दुष्प्रभाव १०१, मिथ्यात्व कर्मबन्ध का प्रबल और प्रथम कारण १0१, मिथ्यात्व सबसे बड़ा पाप १०१, मिथ्यात्व : संसार-परिभ्रमण का जनक १०१, मिथ्यात्व के रहते ज्ञान, चारित्र, तप आदि दूषित १०१, बन्ध के साधक कारणों में मिथ्यात्व की प्रधानता क्यों? १0३, मिथ्यात्व कितनी भयंकर वस्तु है ? १०३, मिथ्यात्वी की कोई प्रवृत्ति मोक्षकारक नहीं १०४, मिथ्यात्वी का ज्ञान उन्मत्त व्यक्तितुल्य मिथ्याज्ञान १०४, मिथ्यात्व : सात ज्वालाओं से युक्त १०५, मिथ्यात्व का बन्धन टूटे बिना अविरति आदि के बन्धन नहीं टूटेंगे १०५, मिथ्यात्व : परम्परागत मौलिक कारण १०५, मिथ्यात्व के प्रभाव से सारी चीजें विपरीत दिखाई देती हैं १०५, मिथ्यात्व रहेगा, तब तक अविरति, प्रमाद, कषाय आदि बने रहेंगे १०६, मिथ्यात्व के कारण विपरीत धारणा का गुरुतर प्रभाव १०७, विभिन्न दर्शनों में भी बन्ध का मूल कारण : मिथ्याज्ञान या अविद्या १०७, 'समयसार' में अज्ञान को बन्ध का प्रमुख व प्रबल कारण कहा है १०८, अज्ञान बन्ध का कारण : कब है, कब नहीं? १०८, अज्ञान बन्ध का कारण क्यों है? १०९, अज्ञान का अर्थ : अल्पज्ञान या ज्ञानाभाव नहीं १०९, अज्ञान का अर्थ और रहस्य : मोह विशिष्ट मिथ्यात्वयक्त ज्ञान ११०, बन्ध का अन्वय-व्यतिरेक : सम्यग्ज्ञान की न्यूनाधिकता के साथ नहीं ११०, मिथ्यात्व-मोहरहित अल्पज्ञान भी अदभुत शक्तियुक्त ११०, मिथ्यात्व का लक्षण : विभिन्न दृष्टियों से १११, आन्तरिक मिथ्यात्व का लक्षण और स्वरूप ११२, मिथ्यात्व में प्रवृत्त होने के दो प्रमुख कारण ११२, विपरीत मान्यता के चार प्रमुख बिन्दु : Jain Education International For Personal & Private Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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