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* ३१४ * कर्मविज्ञान: परिशिष्ट *
प्राण ऊर्जा को व्यग्र, विक्षिप्त एवं नष्ट करने वाली बातें ९१६, चक्षुरिन्द्रिय बल - प्राण- संवर की महत्ता और पद्धति ९१७, प्राण- संवर की साधना एवं दृष्टि से युक्त एवं वियुक्त दूरदर्शन- दूरश्रवण का परिणाम ९१७, गांधारी की दिव्यदृष्टि का सुपरिणाम ९१८, चक्षुरिन्द्रिय बल - प्राण- संवर की साधना-पद्धति ९१८, प्राण-संवर की दृष्टि से युक्त होने पर ही यथार्थ देखा-सुना जा सकता है ९१८, घ्राणेन्द्रिय बल-प्राण का संवर एक चिन्तन ९१९, प्राणशक्ति कैसे निर्बल होती है, कैसे प्रबल ? ९१९, घ्राणेन्द्रिय बल-प्राण के संवर की सही पद्धति जानने से लाभ ९१९, रसनेन्द्रिय बल-प्राण का संवर: कब और कब नहीं ? ९२०, स्पर्शेन्द्रिय बलप्राण- संवर की साधना से लाभ ९२०, त्वचा की संवेदनशीलता भी प्रखर बनती है, स्पर्शेन्द्रिय की प्राणशक्ति के निरोध से ९२२, मनोबल - प्राण के संवर की साधना ९२२, प्राणशक्ति समन्वित मनोबल द्वारा प्रबल • इच्छा-शक्ति की वृद्धि चमत्कार ९२३, प्राणशक्तियुक्त मनोबल कैसे प्राप्त होता है ? ९२४, मन की प्राण ऊर्जा का ह्रास और विकास कैसे होता है ? ९२४, मन को एकाग्र एवं लक्ष्य में केन्द्रित करने के उपाय ९२५, मन की एकाग्रता कहाँ और किन बातों में ? ९२५, मनोबल प्राण- संवर में सावधानी और जागृति . रखना अनिवार्य ९२६, वचनबल-प्राण- संवर की साधना के तथ्य और उपाय ९२६, प्राणवती वाक्शक्ति की क्षमता कैसे प्राप्त हो ? ९२७, वाक्शक्ति का माहात्म्य और चमत्कार ९२७, कायबल - प्राण- संवर का रहस्य ९२९-९३३।
(१६) प्राणबल और श्वासोच्छ्वासबल प्राण- संवर की साधना
पृष्ठ ९३४ से ९७३ तक
प्राण: प्राणियों को जीवनदाता, त्राता और क्रियाशीलता का जनक ९३४, प्राणशक्ति का महत्त्व एवं फलितार्थ ९३५, भौतिक विद्युत् से प्राणिज विद्युत् का प्रभाव बढ़कर है ९३५ प्राणिज प्राण की महत्ता एवं विशेषता ९३६, प्राणबल का ही जीवन के सभी क्षेत्रों में चमत्कार ९३६, प्राण संकल्परूप में भी व्याख्यात ९३७, प्राण: विश्वव्यापी समग्र सामर्थ्य, ब्राह्मी - शक्ति एवं ब्रह्म ९३७, प्राणवल का ब्रह्मतेज जीव के सभी अंगों एवं जीवन के सभी क्षेत्रों में परिदृश्यमान ९३७, प्रसुप्त प्राणबल को जाग्रत किया जाय : असीम क्षमता की प्राप्ति संभव ९३८, प्राणशक्ति के जागरण और रहस्यज्ञान से लाभ ९३९, प्राणशक्ति ज्ञान-दर्शन- चारित्र तप की साधना में सहयोगी ९३९, प्राणशक्ति के विविध चमत्कार ९४०, प्राणबल-संवर के पथिक की पहचान ९४०, प्राणवान साधकों के जीवन में महाशक्ति का अवतरण ९४०, समस्त आध्यात्मिक सिद्धियों का स्रोत : प्राणबल ९४१, प्राणबल-संवर : कितना दुर्गम, कितना सुगम ? ९४१, प्राणबल-संवर के साधकों के लिए इतना पराक्रम अनिवार्य ९४२, प्राणवान् व्यक्ति का दूसरों पर प्रभाव और प्राण जागरण ९४३, प्राणशक्ति की प्रखरता से व्यक्ति ओजस्वी, तेजस्वी, मनस्वी एवं तपस्वी बनता है ९४३, शारीरिक और मानसिक क्षेत्र में प्राणशक्ति का प्रभाव ९४४, प्राणशक्ति की अभिवृद्धि से प्राणबल-संवर-साधना : कैसे और क्यों ? ९४४, चुम्वक शक्ति से अल्पप्राण व्यक्ति भी प्राण ऊर्जा सम्पन्न ९४४, प्राणबल द्वारा सम्प्राप्त उपलब्धियाँ ९४५, चुम्बकीय शक्ति-सम्पन्न में चुम्बक के तीनों गुण ९४५, चुम्बकीय शक्ति का लोप : दुरुपयोग से ९४६, चुम्बकीय शक्ति और प्राणबल-संवर का साधक ९४६, आध्यात्मिक सम्पदाओं की शारीरिक विशेषताओं से एकान्ततः संगति नहीं ९४६, प्राणायाम से प्राणबल का असाधारण विकास : जीवन के सभी क्षेत्रों में सम्भव ९४७, प्राण तत्त्व की मन्दता एवं लोप होते ही जीवन की मन्दता एवं मृत्यु : वैज्ञानिकों की दृष्टि में ९४७, प्राणशक्ति की हानि - वृद्धि के परिणाम ९४८, वैज्ञानिकों की दृष्टि में प्राणशक्ति के कार्यकलाप ९४९, साहसिकता और क्रियाशीलता : आन्तरिक प्राणवल के परिणाम ९४९, प्राणबल - उपार्जक प्राणायाम से विशिष्ट अन्तः ऊर्जा की उपलब्धि ९४९, जीवनी-शक्ति (Life energy) रूप प्राण तत्त्व के छह प्रकार : वैज्ञानिकों की दृष्टि में ९५०, श्वासोच्छ्वास भी प्राण का आवश्यक अंग ९५१, जीवन को स्थिर रखने वाला प्राण: श्वासोच्छ्वास- बलप्राण: क्यों और कैसे ? ९५१, भगवतीसूत्र में प्राणी के जीवन-धारणार्थ उच्छ्वास - निःश्वास का वर्णन ९५२. श्वास के साथ आयु ही नहीं, विद्युत्-तत्त्व का भी आकर्षण और विकर्षण ९५२. श्वास के साथ शरीर में प्राण तत्त्व का प्रवेश : श्वास-प्रश्वास के घर्षण से ९५३. श्वास-प्रश्वास के साथ प्राण ऊर्जा : आत्म-बल आदि की उपलब्धि ९५४ अधिक प्राण ऊर्जा प्राणायाम - प्रक्रिया से ही प्राप्त हो सकती है ९५५, प्राणायाम के मुख्यतः दो उद्देश्य ९५५, स्वास्थ्य-संवर्द्धक प्राणायाम का स्वरूप और उसकी सफलता ९५६, प्राण तत्त्व ही शरीर के सभी स्व-संचालित अंगों और संस्थानों को प्रभावित करता है ९५७, श्वास-प्रश्वास की गति बन्द : सारे क्रियाकलाप बन्द ९५८, शारीरिक
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