________________
* विषय-सूची : प्रथम भाग * २८७ *
है ४६७, वर्तमान में भावकर्म और द्रव्यकर्म दोनों आत्मा के साथ लिपटे हुए हैं ४६७, भावकर्म-द्रव्यकर्म की प्रक्रिया भी कर्म का प्रक्रियात्मक रूप ४६८, जैविक और पौद्गलिक रासायनिक प्रक्रियाओं का योग ही कर्म का प्रक्रियात्मक रूप ४६८, आकाशीय ग्रह-नक्षत्रादि का भूमण्डल आदि पर प्रभाव ४६८, कर्म की एक प्रक्रियात्मक प्रणाली ४६८, आगम में कर्म के प्रक्रियात्मक रूप का एक चित्र ४६९, इस प्रक्रिया में गर्भित एक और प्रक्रिया ४७0, कर्म-परमाणुओं की स्वतः-संचित क्रिया-प्रक्रिया चार विभागों में विभाजित ४७१, कर्मों की स्वतः-संचालित प्रक्रिया-व्यवस्था कैसे और किस रूप में? ४७२, कृतक कर्मों की प्रक्रिया का स्वरूप और उसकी व्यवस्था ४७४, त्रिविध कृतक कर्मों का रूप और उनका कार्य ४७५, विविध कृतक कर्मों के चौदह करण और उनका प्रकार ४७६, अन्तःकरण का कार्य-विभाजन एवं प्रक्रिया ४७८, चेतना-शक्ति का करणों के प्रति उपयुक्तीकरण ४८०, एक ही चेतना-शक्ति का उपयुक्तीकरण दो प्रकार का ४८०, यहाँ कर्म के प्रसंग में क्रियारूप योग ही प्रधान है ४८१, 'योग' शब्द का शास्त्रीय अर्थ ४८१, योग : करणों के माध्यम से चेतना-शक्ति का चंचल होना ४८१, कर्म-प्रक्रिया का प्रारम्भ : भावकरणरूप योग से ४८२, द्रव्यरूप और भावरूप मन, वचन और काया का स्वरूप और कार्य ४८२, कर्म की त्रिविध योगात्मक-चतुर्दशविध करणात्मक प्रक्रिया ४८४। (८) कर्म और नोकर्म : लक्षण, कार्य और अन्तर
पृष्ट ४८५ से ५00 तक कर्म : शब्द एक, अर्थ और आशय अनेक ४८५, कर्म एवं द्विविध द्रव्य-वर्गणा : कर्म-वर्गणा और नोकर्म-वर्गणा ४८५, कार्मणशरीर कर्मरूप और औदारिकादिशरीर नोकर्मरूप ४८६, कार्मणशरीर को उपचार से कर्म कहा गया ४८६, कर्म से पृथक् नोकर्म-संज्ञा क्यों ? ४८७, ‘नोकर्म' शब्द की व्याख्या ४८६. क्या कर्म की तरह नोकर्म भी बन्धनकारक हैं ? ४८७, नोकर्म के दो प्रकार : बद्धनोकर्म और अबद्धनोकर्म ४८८, दोनों प्रकार के नोकर्मों में आत्मा को बाँधने की शक्ति नहीं ४८८, स्थूल-सूक्ष्म सभी पंचभौतिक पदार्थ शरीर में अन्तर्भूत होने से नोकर्म हैं ४८९, साक्षात् कर्म न कहकर नोकर्म क्यों कहा गया? ४८९, कर्म
और नोकर्म में अन्तर का स्पष्टीकरण ४९०, नोकर्म का लक्षण ४९०, नोकर्म : कर्मविपाक में सहायक सामग्री ४९०, भ्रान्त मान्यता ४९१, कर्म और नोकर्म के कार्यों में अन्तर ४९१, कर्म और नोकर्म का पारस्परिक सम्बन्ध ४९२, नोकर्म : कर्म के उदय में सहायक निमित्त ४९२, द्रव्य-निमित्तक नोकर्म का उदाहरण ४९२, क्षेत्र-काल-निमित्तक नोकर्म का उदाहरण ४९३, कर्म : मुख्य निमित्तकारण, नोकर्म गौण निमित्तकारण ४९४, किस-किस कर्म के कौन-कौन-से नोकर्म हैं ? ४९४, कर्म और नोकर्म के कार्यों का विश्लेषण ४९४, ज्ञानावरणादि कर्मोदय के साथ अज्ञानादि भावों की समव्याप्ति है, नोकर्म के साथ नहीं ४९५, कर्म का मुख्य कार्य : संसारी अवस्थाओं में मुख्य निमित्त बनना ४९५, संसारी अवस्थाओं का मुख्य
और गौण निमित्त : कर्म और नोकर्म ४९६, जीव की संसारी अवस्था किन-किन कर्मों के कारण होती है ? ४९७, बाह्य सामग्री का संयोग-वियोग कराना कर्म का कार्य नहीं ४९७, वाह्य सामग्री कर्म का कार्य नहीं : क्यों और कैसे? ४९८, बाह्य सामग्री अपने-अपने कारणों से प्राप्त होती है ४९९, कर्म और नोकर्म की कार्य-मर्यादा का संक्षिप्त विश्लेषण ४९९-५00। (९) कर्मों के रूप : कर्म, विकर्म और अकर्म
पृष्ठ ५०१ से ५२८ तक ___ सभी सांसारिक प्राणी कर्म के चंगुल में ५0१, इन्द्रियाँ निश्चेष्ट, मन कामनावश : मिथ्याचार है ५०१, कार्य न करने मात्र से निष्कर्म या निर्लिप्त नहीं ५०२, सांसारिक जीव अविरत कर्म संलग्न ५०२, शरीर-प्राप्ति के साथ ही कर्म का सिलसिला प्रारम्भ ५०२, देहधारी प्राणी तब तक कर्ममुक्त या अकर्म नहीं हो पाता ५०३. बाहर से निश्चेष्ट, मन से हिंसा कर्म करने में सचेष्ट : कालसौकरिक ५०३, तन्दुलमच्छ की केवल मानसिक क्रिया से सप्तम नरक यात्रा ५०४, ध्यानस्थ प्रसन्नचन्द्र राजर्षि ने मन से ही शुभ-अशुभ कर्म बाँधे और तोड़े ५०४, क्या सभी क्रियाएँ कर्म हैं ? ५०६, पच्चीस क्रियाएँ : स्वरूप और विशेषता ५०६, साम्परायिक क्रियाएँ ही बन्धनकारक, ऐर्यापथिक नहीं ५०७, क्रिया से कर्म का आगमन अवश्य, पर सभी कर्म बन्धनकारक नहीं ५०७. कर्म और अकर्म की फलित परिभाषा ५०८. बन्धक-अबन्धक कम का आधार : बाह्य क्रियाएँ नहीं ५०९. अबन्धकारक क्रियाएँ भी रागादिपर्वक कपाययक्त होने से बन्धक हो जाती हैं ५१०. साधनात्मक क्रियाएँ भी अकर्म के बदले कर्मरूप बन जाती हैं : कब और क्यों? ५११
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org