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* २६० * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
अधोलोक और तिर्यकलोक तीनों में होते हैं। ऊर्ध्वलोक में शब्दापाती आदि ४ वत्तों (वैताढ्य पर्वतों में होते हैं, संहरण की अपेक्षा सौमनस वन या पाण्डुक वन में भी होते हैं। अधोलोक में गर्ता (अधोलोक ग्रामादि) या गुफा में होते हैं। संहरणापेक्षया पाताल-कलशों या भवनपति देवों के भवनों में होते हैं। तिर्यक्लोक में १५ कर्मभूमि में होते हैं। संहरण की अपेक्षा ढाई द्वीप और समुद्रों के एक भाग में होते हैं।' . सोच्चा केवली : स्वरूप, केवलज्ञान-प्राप्ति : कैसे-कैसे और कब ? _ 'असोच्चा केवली' से विपरीत ‘सोच्चा केवली' वह है, जो केवली, केवली के श्रावक-श्राविका, उपासक-उपासिका तथा केवलि-पाक्षिक (स्वयंबुद्ध), केवलिपाक्षिक के श्रावक-श्राविका या उपासक-उपासिका. (इनमें से किसी) से सुनकर केवलि-प्ररूपित धर्मश्रवण-लाभ से लेकर शुद्ध बोधिलाभ, मुण्डित होकर आगारवास से अनगारधर्म में प्रव्रजित, शुद्ध ब्रह्मचर्यवास का धारण करता है, शुद्ध संयम से संयमित होता है, शुद्ध संवर से संवृत होता है, यावत् आभिनिबोधिकज्ञान से केवलज्ञान तक उपार्जित करता है। किन्तु ये सब उपलब्धियाँ उसी सोच्चा केवली को प्राप्त होती हैं, जिसने असोच्चा केवली के प्रकरण में बताये अनुसार तत्तदावरणीय कर्मों का क्षय या क्षयोपशम कर लिया है। इसके विपरीत जिन सोच्चा केवलियों ने तत्तदावरणीय कर्मों का क्षयोपशम या क्षय नहीं किया, उन्हें ये उपलब्धियाँ सहज सुलभ नहीं होती। निष्कर्ष यह है कि जिस प्रकार असोच्चा केवली के प्रसंग में कहा गया था कि केवली आदि दस महान् आत्माओं में से किसी से शुद्ध धर्मश्रवण किये बिना ही कौन व्यक्ति केवलि-प्रज्ञप्त धर्मश्रवण का लाभ पाता है, शुद्ध सम्यग्दर्शन का अनुभव करता है यावत् केवलज्ञान उपार्जित करता है इत्यादि। बोलों से सम्बद्ध प्रश्नों के उत्तर में (सू. १३ में) बताया गया कि उन-उन कर्मों का क्षयोपशम तथा क्षय करने वाले व्यक्ति (असोच्चा साधक) को उस-उस बोल की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत जिस (असोच्चा) के उन-उन आवरक कर्मों का क्षयोपशम या क्षय नहीं होता, वह उस-उस बोल की प्राप्ति से वंचित रहता है। उसी प्रकार यहाँ वही सब बातें 'सोच्चा केवली' के सम्बन्ध में जान लेनी चाहिए, विशेष यही है कि यहाँ ‘असोच्चा' के बदले ‘सोच्चा' (सुनकर) ऐसा पाठ समझना चाहिए। ‘असोच्चा केवली' को केवली आदि से बिना सुने ही उक्त ११ बोलों की प्राप्ति उन-उन आवरक कर्मों के क्षयोपशम या क्षय से होती है, वैसे सोच्चा केवली को केवली आदि से सुनकर उन-उन आवरक कर्मों के क्षयोपशम या क्षय से उक्त बोलों की प्राप्ति होती है। .
१. भगवतीसूत्र, श. ९, उ. ३१, सू. २७-३१, विवेचन (आ. प्र. स., व्यावर), पृ. ४४९-४५0 २. वही, श. ९, उ. ३१, सू. ३२, विवेचन (आ. प्र. स., ब्यावर), पृ. ४५१-४५२
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