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________________ मोक्ष की अवश्यम्भाविता का मूल : केवलज्ञान : क्या और कैसे-कैसे? मोक्ष-प्राप्ति का मूल क्या, क्यों, कैसे और किसको ? आगमों और ग्रन्थों में बार-बार मोक्ष, मुक्ति, निर्वाण, सिद्धि, सिद्धत्व या परमात्मपद-प्राप्ति के महत्त्व का जोर-शोर से निरूपण किया गया है। मानव-जीवन का चरम लक्ष्य भी मोक्ष को ही माना गया है। श्रमणों और श्रावकों की या विभिन्न साधकों या सज्जनों की जितनी भी साधना-आराधनाएँ हैं, उन सब का अभीष्ट प्रयोजन सर्वकर्म क्षयरूप मोक्ष प्राप्त करना है। अनेक महान् आत्माओं तथा सामान्य मोक्ष रुचि वाले मानवों द्वारा विभिन्न प्रकार से, विभिन्न उपायों से मोक्ष प्राप्त होने का उल्लेख भी जैनांगमों तथा ग्रन्थों में यत्र-तत्र किया गया है। कई जैनेतर धर्मों और दर्शनों ने मोक्ष-प्राप्ति के सस्ते नुस्खे भी बताये हैं, जिनका उल्लेख भी पिछले निबन्धों में कर चुके हैं। प्रश्न यह है कि जैन-कर्मविज्ञान मोक्ष-प्राप्ति के लिए किसको मूलाधार मानता है? यानी किसके होने पर मोक्ष अवश्यम्भावी होता है, निश्चित है? और किसके न होकर मोक्ष कदापि सम्भव नहीं हैं ? साथ ही मोक्ष के मूलाधार उस तत्त्व का स्वरूप क्या है? वह कैसे-कैसे, किस-किस को होता है? उससे सम्पन्न व्यक्ति कितने प्रकार के हैं ? इस पर शास्त्रीय एवं सैद्धान्तिक दृष्टि से विचार कर लेना आवश्यक है। केवलज्ञानी होने पर ही निश्चित रूप से मोक्ष प्राप्त हो सकता है - पूर्ण मोक्ष-प्राप्ति के सम्बन्ध में जैन-कर्मविज्ञान की एक शर्त है कि जब भी किसी जीव को मोक्ष प्राप्त होगा, तब केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त होने पर ही होगा, पहले नहीं। इस सम्बन्ध में 'भगवतीसूत्र' में एक प्रश्न किया गया है-भंते ! . अनन्त अतीत में क्या कोई छद्मस्थ मनुष्य केवल संवर से, केवल ब्रह्मचर्यवास से या केवल अष्ट प्रवचनमाता (५ समिति ३ गुप्ति) के पालन से सिद्ध-बुद्ध-मुक्त यावत् सर्वदुःखों का अन्त करने वाला हुआ है? इसके उत्तर में भगवान ने साफ इन्कार कर दिया कि “ऐसा कदापि संभव नहीं होता। जब भी कोई मनुष्य सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हुए हैं या जिन्होंने समस्त दुःखों का अन्त किया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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