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________________ * २३४ * कर्मविज्ञान : भाग ९ * प्राण-शक्ति-श्वास-शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है। प्राणसंवर द्वारा प्राण-शक्ति. अर्जित करके उसके माध्यम से आत्मिक-शक्तियों का अनायास ही जागरण हो सकता है। फेफड़ों से श्वास-क्रिया का गहरा सम्बन्ध है। वे जितने खुलते हैं, उतनी ही प्राण-शक्ति बढ़ती है। वे जितने अवरुद्ध रहते हैं, उतनी ही शक्ति की कमी रहती है। उचित पद्धति से क्रिया न होने से थोड़े से सेल्स खुलते हैं, बाकी के ९०-९५ प्रतिशत सेल्स अवरुद्ध रहते हैं। आयुष्यबलप्राण द्वारा आत्म-शक्ति का विकास और जागरण कैसे हो? ___ आयुष्यबल भी तन, मन, प्राण, इन्द्रियाँ आदि को स्वस्थ और सन्तुलित रखने से, मल-मूत्रादि शारीरिक वेगों को न रोकने से, अतिभोजन, अतिनिद्रा, तापसिक खान-पान, आधि, व्याधि, उपाधि से तथा ईर्ष्या, द्वेष, तनाव, चिन्ता आदि मानसिक वेगों को न रोकने से क्षीण होता है। यदि आयुष्यबल, इन्द्रियबल, तन-मन-वचनबल, प्राणबल आदि प्रबल हों तो स्वस्थ, सशक्त एवं मनोबली व्यक्ति अपनी आत्म-शक्ति (पण्डितवीर्य) को रत्नत्रयादिरूप धर्माचरण में अथवा आत्म-स्वभावादि में लगाकर जाग्रत एवं अभिव्यक्त कर सकता है।' अशुद्ध और शुद्ध पराक्रम (वीर्य) से बालवीर्य और पण्डितवीर्य की पहचान उपर्युक्त तमाम तथ्यों को जानने के बाद भी एक महत्त्वपूर्ण वात और रह जाती है वह यह है-बालवीर्य और पण्डितवीर्य की पहचान। 'सूत्रकृतांगसूत्र' में बताया गया है कि जो व्यक्ति अबुद्ध (धर्म और मोक्ष के वास्तविक तत्त्वों से अनभिज्ञ) हैं, (किन्तु सांसारिक लोगों की दृष्टि में) महाभाग (महाभाग्यशाली या शहापूज्य या लोकविश्रुत माने जाते हैं, (प्रतिवादी या शत्रुसेना को जीतने में) वीर (शूरवीर या वाग्वीर) हैं, (किन्तु) असम्यग्दर्शी (मिथ्यादृष्टि) हैं। उन सम्यक्त्व पा ज्ञानरहित लोगों का (तप, नियम, संयम, दान, अध्ययन, व्रत, प्रत्याख्यान आदि में किया गया) पराक्रम (वीर्य) अशुद्ध है; क्योंकि उनका सब-का-सब पराक्रम (कर्मवन्धयुक्त होने) कर्मफलयुक्त होता है। (इसके विपरीत) जो व्यक्ति बुद्ध परमार्थ के यथार्थस्वरूप = तत्त्व के ज्ञाता) हैं, महाभाग (महापूज्य या पहभाग्यवान्) हैं, वीर (कर्मविदारण करने में सहिष्णु-सक्षम या विशिष्ट ज्ञानादि गुणों ने विराजित = सुशोभित) हैं, (साथ ही) सम्यक्त्वदर्शी (सम्यग्दृष्टि = परमार्थतत्त्वज्ञ) हैं, उनका (तप, दान, यम, नियम, संयम, अध्ययन, व्रत. प्रत्याख्यान आदि में किया गया) पराक्रम (वीर्य) शुद्ध है और (कर्मवन्ध से होने ५. पानी में पीन पियासी से भाव ग्रहण, पृ. ४५२-४७७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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