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________________ * २२४ * कर्मविज्ञान : भाग ९ * शान्त हो गये। सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक चारित्र के प्रबल संस्कार उद्बुद्ध हो गए। रत्नत्रय की सम्यक् आराधना के साथ-साथ उग्र तप की आराधना भी वे करने लगे। आभ्यन्तर तप के साथ उग्र तपश्चर्या करने से उनकी आत्म-शक्ति जाग्रत और अभिव्यक्त हो गई। उनका मनोबल, वचनबल, कायबल एवं प्राणबल भी सुदृढ़ हो गया। विशिष्ट योग्यता प्राप्त करके विश्वभूति मुनि विशिष्ट साधना के लिए गुरु-आज्ञा लेकर एकाकी विचरण करने लगे। एक बार विचरण करते हुए एकलविहारी विश्वभूति मुनि मथुरा नगरी में पधारे। उग्र तपस्या के कारण अत्यन्त कृशकाय विश्वभूति मुनि मासखमण के पारणे के लिए मथुरा नगरी में घूम रहे थे। मथुरा का राजा विशाखनन्दी का श्वसुर था। जिस समय विश्वभूति मुनि राजमहल के निकट से होकर जा रहे थे, उसी समय अपने ससुराल में आया हुआ विशाखनन्दी राजमहल के झरोखे में बैठे। सहसा उसके आसपास बैठे हुए सेवकों की दृष्टि विश्वभूति मुनि पर पड़ी। सेवकों ने विशाखनन्दी को विश्वभूति मुनि का परिचय दिया तो विशाखनन्दी ने उन्हें पहचान लिया। विश्वभूति नीची नजर किये जा रहे थे कि अचानक एक गाय ने सामने से आकर मुनि को धक्का लगाया, वे नीचे गिर पड़े। यह देख विशाखनन्दी ने जोर से अट्टहास करते हुए कहा-“कहाँ गई वह शक्ति? मुट्ठी के प्रहार से बेल के फलों को गिराने वाला आज गाय के धक्के से क्यों गिर पड़ा?" बस, विश्वभूति के कान में पड़े इन शब्दों ने आग में घी होमने का काम किया। अपनी शक्ति को चुनौती देने वाले पर मुनि की क्रोधाग्नि भड़क उठी-"यह दुष्ट विशाखनन्दी अभी तक मेरे प्रति वैरभाव रख रहा है। मेरा इतना तिरस्कार और उपहास ! मेरी शक्ति को चेलेंज ! मैं इसे दिखा दूँ कि अभी भी मेरे में कितनी शक्ति है ?" उसने खड़े होकर आगे चली जा रही गाय के सींग कसकर पकड़े और ३-४ बार गोल-गेल घुमाकर गाय को गेंद की तरह उछाल दिया ! गाय के वहीं प्राणपखेरू उड़ गये। मुनि ने अब तक आत्म-साधना से जो अविकृत आत्म-शक्ति जाग्रत की थी, वह आज क्रोध, आवेश, रोष और अहंकार से विकृत होकर इस कृशकाय मुनि के शरीर से फूट पड़ी। तपश्चर्या से मुनि की काया क्षीण होने पर भी पूर्वोक्त निमित्त से क्रोध और अहंकार ने भयंकर शक्ति जाग्रत और प्रकट कर दी। फलतः क्रोध और अहंकार के आवेश में मुनि से यह भयंकर कुकृत्य हो गया। वे आवेश में यह भूल गए कि मैं मुनि हूँ। षट्कायिक जीवों की रक्षा करना मेरा धर्म है। किसी का तिलभर भी दिल न दुखाना अहिंसा महाव्रती का सिद्धान्त है। किन्तु आज वे शक्ति के मद में आकर महाव्रत, संयम, नियम, श्रमणधर्म आदि सब भूल पए। वर्षों से विश्वभूति मुनि ने जो पवित्र आत्म-शक्ति अर्जित और जाग्रत की थी, आज जरा-से निमित्त को पाकर क्रोध और अहंकार के विभाव के वशीभूत होकर नष्ट कर दी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004250
Book TitleKarm Vignan Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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