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* ११२ * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
१,४२,३०,२४९ योजन की है। इस सीता नामक ईषत्-प्राग्भारा पृथ्वी से एक योजन ऊपर लोक का अन्त (सिरा) है।' सिद्धशिला : पहचान, बारह नाम, सिद्धों का अवस्थान ___ इस सिद्धशिला के एक योजन ऊपर अग्र भाग में ४५ लाख लम्बे-चौड़े और ३३३ धनुष ३२ अंगुल ऊँचे क्षेत्र में अनन्त सिद्ध भगवान विराजमान हैं। उस सिद्धशिला के बारह नाम इस प्रकार हैं-(१) ईषत्, (२) ईषत्-प्रारभारा, (३) तनु, (४) तनुतर, (५) सिद्धि, (६) सिद्धालय, (७) मुक्ति, (८) मुक्तालय, (९) लोकाग्र, (१०) लोकाग्र-स्तूपिका, (११) लोकाग्र-बुध्यमान, (१२) सर्व-प्राणभूत-जीवसत्त्व-सुखावहा।
सिद्धशिला के एक योजन के ऊपर का जो कोस है, उस कोस के छठे भाग में सिद्धों की अवगाहना होती है।
निष्कर्ष यह है कि अनन्त ज्ञान-दर्शन से युक्त, संसार-पारंगत, परम गति = सिद्धि को प्राप्त वे सिद्ध-परमात्मा सिद्ध-लोक के एक देश में स्थित हैं। एक स्थान में अनेक सिद्ध कैसे रहते हैं ? ___ यहाँ प्रश्न होता है कि एक ही स्थान में अनेक सिद्ध कैसे रह सकते हैं? क्या वे परस्पर टकराते नहीं हैं ? इसका समाधान यह है कि जैसे एक कमरे में रखे हुए अनेक दीपकों या बल्बों का प्रकाश परस्पर मिल जाता है, टकराता नहीं; एकरूप दृष्टिगोचर होने लगता है, इसी प्रकार अनेक सिद्धों के ज्योतिरूप आत्म-प्रदेश परस्पर अवगाढ़ होकर रहते हैं व स्थित हो जाते हैं। अमूर्त होने के कारण उनका एक-दूसरे में अवगाढ़ होने (समाने) में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती। उनका व्यक्तित्व (आत्मा) भिन्न-भिन्न होते हुए भी, उनके आत्म-प्रदेश एक-दूसरे में समाये हुए रहते हैं। जैसे-घट, पट आदि की आकृति, प्रकृति भिन्न-भिन्न होते हुए भी एक ही पुरुष की बुद्धि में ठहर (समा) जाती है, वैसे ही सिद्ध भगवन्तों के आत्म-प्रदेश परस्पर समा जाते हैं। जैसे एक ही पुरुष की बुद्धि में हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती, बंगाली, मराठी, संस्कृत आदि भिन्न-भिन्न भाषाओं का उच्चारण, प्रकृति-प्रत्यय आदि भिन्न प्रकार का होते हुए भी समभाव से रहती हैं, उनमें परस्पर संघर्ष नहीं होता, वे एकरूप होकर रहती हैं। इसी प्रकार ‘औपपातिकसूत्र' के अनुसार-जहाँ एक सिद्ध विराजमान है, वहाँ भव क्षय (जन्म-मरण सांसारिक
१. (क) उत्तराध्ययनसूत्र, अ. ३६. गा. ५७-६७
(ख) 'जैनतत्त्वकलिका' से भाव ग्रहण, पृ. ९३ २. उत्तराध्ययन, अ. ३६, गा. ३७-६७
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