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* ७२ * कर्मविज्ञान : भाग ९ *
साम्राज्य हो जाता है तथा भगवान भी गन्धहस्ती के समान इतने मंगलकारी हैं कि उनका जहाँ भी पदार्पण होता है, उस प्रदेश में अतिवृष्टि, अनावृष्टि, महामारी आदि का उपद्रव टिक नहीं सकता; बाह्य उपद्रव के साथ जनता के अन्तरंग उपद्रव ( काम-क्रोधाधि) भी शान्त हो जाते हैं।
लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहितंकर - भगवान बाह्य (अष्ट महाप्रातिहार्यादि) और आन्तरिक (अनन्त ज्ञानादि) सम्पदा के कारण समग्र लोक में समस्त जीवों में उत्तम होते हैं। कल्याणमार्ग का योग-क्षेम करने के कारण भगवान लोक के नाथ हैं। इसी प्रकार भगवान उपदेश और प्रवृत्ति से समग्र लोक के हितकर्मा होते हैं।
लोकप्रदीप, लोकप्रद्योतकरकर-भव्य जीवों के हृदय-मन्दिर में स्थित मिथ्यात्वान्धकार को मिटाकर ज्ञानरूपी प्रकाश करने से भगवान लोकप्रदीप होते हैं। सूर्य और चन्द्र भी प्रकाश तो करते हैं, किन्तु अपने समान प्रकाशमान किसी को नहीं बना सकते, जबकि दीपक स्वयं प्रकाश भी देता है, साथ ही वह अपने सम्पर्क में आए हजारों दीपकों को प्रदीप्त कर अपने समान प्रकाशमान दीपक बना देता है। भगवान केवलज्ञान का प्रकाश फैलाकर ही विश्राम नहीं लेते, अपितु स्व-सम्पर्क में आने वाले अन्य साधकों को भी साधना का पथ-प्रदर्शित करके अन्त में अपने समान ही बना लेते हैं। तीर्थंकरों का ध्याता, ध्यान के द्वारा अन्त में ध्येयरूप हो जाता है। गौतम गणधर और महासती चन्दनबाला का उदाहरण प्रसिद्ध है।
अभयदाता, चक्षुदाता, मार्गदाता, शरणदाता, जीवनदाता, बोधिदाता, धर्मदाताभगवान अभयदाता है। दानों में श्रेष्ठ दान अभयदान है । गोशाल जैसे प्रतिपंथी उद्दण्ड को भगवान ने वैश्यायन बाल तपस्वी द्वारा फेंकी गई तेजोलेश्या से जलने से बचाया। स्वयं घोर कष्ट सहकर ऐसे उद्दण्ड, प्रतिकूल व्यक्तियों, चण्डकौशिक जैसे प्राणियों को अभयदान दिया। तीर्थंकर भगवान सम्पर्क में आने वाले प्राणियों को, जो अज्ञानान्ध हों, उन्हें ज्ञानरूपी नेत्र प्रदान करते हैं। भगवान अनादिकाल से मार्ग भूले हुए तथा संसाराटवी में फँसे हुए प्राणी के मार्गदर्शक हैं। इसी प्रकार वे चार गतियों के दुःखों से त्राण पाने हेतु शरण में आए हुए जीवों को शरण देने वाले शरणदाता हैं। वे मोक्ष-स्थान तक पहुँचाने हेतु संयमरूप जीवन के दाता हैं। वे भव्य अबोधों को बोध देने वाले हैं। आत्मोन्नति से गिरते हुए जीवों को धारण करके रखने वाले सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयरूप धर्म के दाता हैं।
धर्मोपदेशक, धर्मनायक, धर्मसारथी - भगवान धर्म के यथार्थ उपदेशक हैं। वे चतुर्विध श्रमण-संघ के नेता, रक्षक और प्रवर्तक हैं; धर्मनाक हैं। बे चतुर्विध संघ को धर्मरूपी रथ में बिठाकर सन्मार्ग से मोक्षनगर में ले जाने वाले धर्मसारथी हैं।
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