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* अरिहन्त : आवश्यकता, स्वरूप, प्रकार, अर्हता, प्राप्त्युपाय * ५७ *
'भक्तामर स्तोत्र' में भी बद्ध, शंकर, ब्रह्मा, विष्णु और पुरुषोत्तम के भी उन-उन अर्हद् गुणों से विभूषित होने की स्थिति में अरिहन्त माना गया है।'
इसी प्रकार हेमचन्द्राचार्य ने ‘महादेवाष्टक स्तोत्र' बनाया है, उसमें वास्तविक महादेव का लक्षण उन्होंने आठ श्लोकों द्वारा बताया है कि मनुष्य चाहे तो वास्तविक महादेव बन सकता है। उसका एक श्लोक इस प्रकार है
“राग-द्वेषौ महामल्लौ, जितौ येन महात्मना।
महादेवः सविज्ञेयः, शेषा वै नामधारकाः॥२ -जिस महान् आत्मा ने राग-द्वेषरूपी महामल्लों को जीत लिया है, उसे महादेव समझना चाहिए। इस लक्षण के अतिरिक्त शेष नामधारी हैं।
जैनागमों में अरिहन्त के लिये जिन, वीतराग, सयोगी केवली, अरहा आदि अनेक पर्यायवाची शब्द मिलते हैं। 'जिन' शब्द का अर्थ है जीतने वाला। किसे जीतने वाला? वह यहाँ गुप्त एवं अध्याहृत है। आगमों और ग्रन्थों में इसका उत्तर मिलता है।
'सर्वार्थसिद्धि' में कहा गया है-“राग-द्वेष विजेता, कर्मरूपी पर्वतों के भेत्ता और विश्वतत्त्वों के ज्ञाता को मैं उनके गुणों की प्राप्ति (उपलब्धि) के लिये वन्दन करता हूँ।"
केवली का स्वरूप और प्रकार - केवली तथा सयोगी केवली, ये दोनों शब्द भी अरिहन्तों के लिए प्रयुक्त होते हैं। केवली की परिभाषा ‘मूलाचार' में इस प्रकार की गई है- “जो केवलज्ञान के द्वारा लोक और अलोक को जानते हैं तथा देखते हैं एवं जिनके केवलज्ञान ही आचरण है, इस कारण वे भगवान केवली (केवलज्ञानी, निरावरणज्ञानी) हैं।" 'सर्वार्थसिद्धि' के अनुसार-जिनके समस्त ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय हो चुका है, जिनका ज्ञान निरावरण है, वे केवली कहलाते हैं। वे दो प्रकार के हैं-सयोगी और अयोगी केवली। जो मन-वचन-काया के योग से युक्त हैं, वे सयोगी (अरिहन्त) और इन योगों से रहित हैं, वे अयोगी केवली (सिद्ध) कहलाते हैं। 'द्रव्यसंग्रह टीका' में कहा गया है-सर्वप्रथम मोहकर्म का क्षय करके शेष ज्ञानावरणीयादि तीनों
१. भक्तामर स्तोत्र, श्लो. २४-२५ २. महादेवाष्टकम् (आचार्य हेमचन्द्र) से भाव ग्रहण ३. 'जैनतत्त्वकलिका से भाव ग्रहण ४. राग-द्वेष विजेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम्। ____ ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वंदे तद्गुणलब्धये ॥
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