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* मोक्ष के निकटवर्ती सोपान * ११ *
- श्मशान में निवास : निर्भयता की सिद्धि के लिए आवश्यक ऐसे प्रशस्ततर शुद्ध वात्सल्य (प्रेम) में प्रबल बाधक कारण है-भय। भय की जड़ों को उखाड़ने और निर्भयता के पथ पर सरपट गति करते हुए सिद्धि के अन्तिम शिखर तक पहुँचने के लिए कहा गया है
“वली श्मशानमां, वली पर्वतमां वाघ-सिंह-संयोग जो।" श्मशान को मुर्दा जलाने का स्थान या मरघट कहते हैं, जिसके साथ भूत, प्रेत, व्यन्तर, जिन्द आदि के भय की मान्यता वर्षों से जुड़ी हुई है। ऐसी मान्यता आबाल-वृद्ध लोगों के दिमाग में वर्षों से चिपकी हुई है। इन प्रेतात्माओं के प्रति पहले से दिमाग में घुसे हुए भय के संस्कार जब तक निर्मूल न हों तथा सूक्ष्म और स्थूल दोनों प्रकार के मनों (अज्ञातमन, ज्ञातमन) में निर्भयता व्याप्त न हो एवं दोनों प्रकार के सूक्ष्म-स्थूल शरीरों में स्थित चैतन्यों (आत्माओं) के साथ मेरी आत्मीयता है, ऐसा दृढ़ भान न हो, वहाँ तक विश्वव्यापी शुद्ध वात्सल्य (प्रेम) का विकास नहीं हो सकता। क्योंकि पूर्वोक्त भय आदि के विकल्प बार-बार आकर उसकी साधना में विक्षेप करते रहेंगे। इसलिए ऐसे मुमुक्षु साधक को श्मशान आदि जैसे सूने स्थानों में निवास और चिर सहवास करके इन और ऐसी समस्त विभीषिकाओं के भय से चित्त को विमुक्त करने का सुदृढ़ अभ्यास करना चाहिए। निर्जन पर्वतीय प्रदेश में वन्य क्रूर प्राणियों के सम्पर्क में
दया और निर्भयता रहे इसके अतिरिक्त भय के अन्यान्य स्थलों और प्राणियों के प्रति भी दिमाग में जमे हुए भय के संस्कारों को निर्मूल करने के लिए कहा गया है
___ “वली सर्वतमां वाघ-सिंह-संयोग जो।' वर्तमान में दृश्यमान स्थूल सृष्टि में सर्वाधिक निर्जन प्रदेश पर्वत होता है, जहाँ क्रूर वन्य प्राणी उसके आसपास विचरण करते हैं और गुफाओं में निवास करते हैं। पर्वत जैसे निर्जन प्रदेश है, वैसे अधिक भयंकर भी है। मनुष्य जिनसे डरता है और जो मनुष्य से डरते हैं, ऐसे परस्पर-भयाक्रान्त वन्य पशु भी वहाँ विशाल संख्या में होते हैं। बाघ, चीता, सिंह, सर्प, भालू, अजगर आदि सब क्रूर प्राणियों ने मनुष्य के दिमाग में केवल भयंकरता का स्थान ही नहीं जमाया है, अपितु मनुष्य इन्हें अपने कट्टर शत्रु मानकर, इन निर्दोष प्राणियों का केवल अपने शौक और वीरता प्रगट करने हेतु वध भी करता है। फलस्वरूप मानव-जाति में निर्दयता और भीति, ये दोनों दुर्गुण एक साथ विकसित हुए हैं। यह तो अनुभव-सिद्ध बात है कि ऐसे क्रूर मनुष्यों का मनोबल कमजोर, डरपोक एवं शिथिल होता है। इसीलिए कहा गया है कि ऐसा उच्चकोटि का महासाधक ऐसे
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