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कर्म-सिद्धान्त : बिंद में सिंधु
(कर्मविज्ञान सम्पूर्ण नौ भागों का विहंगावलोकन) आज विश्व में चारों ओर कर्म, कर्म और कर्म की आवाजें आ रही हैं। क्या पारिवारिक और क्या सामाजिक, क्या आर्थिक और क्या राजनैतिक, इसी प्रकार नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक आदि जीवन के सभी क्षेत्रों में कर्म को प्रधानता दी जा रही है। भारतीय धर्मों और दर्शनों ने ही नहीं. पाश्चात्य धर्मों और दर्शनों ने भी एक या दूसरे प्रकार से कर्म की महत्ता को स्वीकार किया है। पश्चिमी देशों में Good deed और Bad deed के नाम से 'कर्म' शब्द प्रचलित है। जैनदर्शन ने ही नहीं, भारत के मीमांसा, वेदान्त, योग, सांख्य, बौद्ध और गीता आदि दर्शनों ने भी 'कर्म' को एक या दूसरे प्रकार से माना है चार्वाक या नास्तिक दर्शन ने आत्मा का अस्तित्व न मानकर भी अच्छे और बुरे कार्य के रूप में कर्म को माना है। . इस प्रकार झोंपड़ी से लेकर महलों तक 'कर्म' शब्द गूंज रहा है। जीवन के कण-कण और क्षण-क्षण में कर्म रमा हुआ है। कोई भी जीवित प्राणी कर्म किये बिना रह नहीं सकता।
परन्तु इनमें से अधिकांश धर्म, दर्शन, मत या समाज तो कर्म का अर्थ-किसी प्रकार का कार्य करना ही कर्म है; इतना ही करते हैं। इसके सिवाय उनकी सूझबूझ या विचारधारा कर्म से सम्बन्धित विविध प्रश्नों की ओर जाती ही नहीं। भारत के कतिपय धर्मग्रन्थ यह जरूर प्रतिपादित करते हैं
_ “कर्मप्रधान विश्व करि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा।" .. यह विश्व कर्मप्रधान है, जो प्राणी जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल प्राप्त करता है। इस प्रकार प्रायः सभी आस्तिक दर्शन या धर्म कर्म को तो एक या दूसरे प्रकार से स्वीकार करते हैं। किन्तु वे न तो उस 'कर्म' का वास्तविक स्वरूप बताते हैं, न ही उसके विविध प्रकार और अस्तित्व को सिद्ध करते हैं। जैनदर्शन ने कर्म का सर्वांगीण सम्पूर्ण विचार प्रस्तुत किया है ___ जैनदर्शन ने कर्म का वास्तविक स्वरूप, अस्तित्व, कर्म के आसव, बन्ध तथा नये आते हुए कर्मों के निरोधरूप संवर तथा पुराने संचित कर्मों के क्षयरूप निर्जरा एवं सर्वकर्ममुक्तिरूप मोक्ष आदि के साथ-साथ
कर्मों के प्रकार तथा उनके आस्रव एवं बन्ध के कारणों तथा कर्मनिरोध एवं कर्मक्षय के कारणों पर दीर्घ • ' दृष्टि से गहन विचार किया है। .' मीमांसा आदि कतिपय दर्शन जहाँ कामनामूलक कर्मों को वास्तविक कर्म मानते हैं, इसी प्रकार इस्लाम एवं ईसाई धर्म केवल शुभ-अशुभ कर्म का फल स्वर्ग और नरक बताकर ही छुट्टी पा लेते हैं। कर्मों से सर्वथा छुटकारा पाने या शुभाशुभ कर्मक्षय या कर्मनिरोध का कोई उपाय नहीं बताते। वैदिकधर्म की परम्परा में कतिपय कर्मों का शुभाशुभ फल बता दिया गया है अथवा अशुभ कर्म को शुद्धि के लिए प्रायश्चित्तरूप फल बताकर ही विराम पा लिया है। कतिपय भक्तिमार्गी सम्प्रदाय, मत अथवा दर्शन मोक्ष को बहुत ही सस्ता बताते हैं, कोई केवल भक्ति से मुक्ति मानते हैं, कोई केवल तत्त्वज्ञान से और कोई केवल तीर्थजल-स्नान या अमुक वनस्पति-सेवन या कष्टकारक क्रियाकाण्ड करने से मोक्ष मानते हैं। ____ कर्म से सम्बन्धित इन सभी प्रश्नों या तथ्यों का युक्ति, सूक्ति एवं अनुभूतियुक्त समाधान भगवत्प्ररूपित आगमों, शास्त्रों में एवं कर्ममर्मज्ञ आचार्यों ने कर्मग्रन्थों, कम्मपयडी, पंचसंग्रह, गोम्मटसार, महाबंधों, धवला आदि ग्रन्थों में दिया गया है। परन्तु उससे आधुनिक भौतिकविज्ञानविदों, दार्शनिकों, पाश्चात्य विज्ञानवेत्ताओं, परामनोवैज्ञानिकों, कतिपय धर्मशास्त्रियों, अध्यात्मरसिकों या शोधार्थियों को पूर्णतया
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