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निश्चयदृष्टि से मोक्षमार्ग : क्या, क्यों और कैसे ? २११
अज्ञानवाद की आधारशिला है। अतः इस प्रकार का अज्ञान (वाद) मोक्ष का कारण हो ही नहीं सकती।'
तथागत बुद्ध का अस्थिर उत्तर भी अज्ञानवाद का अंग है दीर्घनिकाय में ब्रह्मजालमुत्त में अमराविक्खेववाद में तथागत बुद्ध द्वारा प्रतिपादित वर्णन भी 'सूत्रकृतांग के १२ वें अध्ययन में उक्त अज्ञानवाद से मिलता-जुलता है। संक्षेप में वह इस प्रकार है- " भिक्षुओ ! कोई श्रमण या ब्राह्मण ठीक से नहीं जानता कि यह अच्छा है और यह बुरा। उसके मन में ऐसा होता है कि मैं ठीक से नहीं जानता कि 'यह अच्छा है, यह बुरा है', तब मैं ठीक से जाने विना यह कह दूँ कि यह अच्छा है और यह बुरा है, तो असत्य ही होगा । ऐसा मेरा असत्य भाषण मेरे लिए घातक ( नाश का कारण ) होगा, जो घातक होगा, (मोक्षमार्ग में) अन्तराय (वाधक) होगा। अतः वह असत्य भाषण के भय से और घृणा से न यह कहता है कि यह अच्छा है और न यह कि यह बुरा है। प्रश्नों के पूछे जाने पर कोई स्थिर ( निश्चित) बात नहीं करता।' यह भी नहीं, वह भी नहीं, ऐसा भी नहीं, वैसा भी नहीं ।" इसी प्रकार किसी पदार्थ के विषय में पूछे जाने पर उत्तर में अच्छा-बुरा कहने से राग, द्वेष, लोभ, घृणा आदि की आशंका या तर्क-वितर्क का उत्तर देने में असमर्थता विघात (दुर्भाव ) और बाधक समझकर किसी प्रकार का स्थिर उत्तर न देकर अपना अज्ञान प्रगट करना भी इसी अज्ञानवाद का अंग है।२
वह
ये तीसरे प्रकार के अज्ञानवादी स्वयं सम्यग्ज्ञानशून्य हैं, तब वे मोक्षमार्ग को कैसे जान सकेंगे और प्राप्त कर सकेंगे ?
अज्ञानवादी कहाँ हैं सुखी, सन्तुष्ट, कुशलक्षेमयुक्त ?
तृतीय प्रकार के अज्ञानवादी अपने आप को कुशल (चतुर) मानते हैं, वे कहते हैं- "हम सब तरह से कुशलमंगल हैं। हम न किसी से व्यर्थ ही बोलते हैं, न ज्ञान बघारते हैं। चुपचाप अपने काम में मस्त रहते हैं। ज्ञानवादी तो अपने अहंकार में डूबे हैं, परस्पर लड़ते हैं, दूसरों पर आक्षेप करते हैं। वे वाक्कलह से परस्पर असन्तुष्ट और अकुशल रहते हैं । " परन्तु अज्ञानवादियों का यह आक्षेप निराधार है। जो सम्यग्ज्ञानी-सम्यग्दर्शी होगा, वह न तो लड़ता है, न अहंकारग्रस्त होता है। अज्ञानवादी स्वयं को कुशलमंगलरूप मानते हैं, किन्तु अज्ञान के कारण कोई भी जीव कुशल मंगलमय नहीं होता। अज्ञान के कारण ही तो जीव नाना दुःखों से
१. 'संजयवेलट्ठिपुत्त' के अज्ञानवाद के विषय में देखें- सुत्तपिटके दीघनिकाये सामञ्जफलसुत्तं, पृ. ४१-५३
में
२. देखें - तथागत बुद्ध के अनिश्चयवादरूप अज्ञानवाद के विषय में दीघनिकाय ब्रह्मजालसुत्त तथागत बुद्ध द्वारा कथित अमराविक्खेववाद ( हिन्दी अनुवाद), पृ. १-१०
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