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* मोक्ष से जोड़ने वाले : पंचविध योग
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वृत्तिसंक्षययोग का विशद स्वरूप और उसका प्रतिफल अतएव वृत्तिसंक्षययोग का फलितार्थ इस प्रकार है-आत्मा में अन्य संयोग (मन और शरीर के संयोग) से उत्पन्न होने वाली विकल्परूप तथा चेष्टारूप वृत्तियों का अपुनर्भावरूप से जो निरोध = आत्यन्तिक क्षय-समूल नाश होने का नाम वृत्तिसंक्षययोग है। इसमें इतना विवेक जरूर है कि तेरहवें सयोगकेवली गुणस्थान की अवस्था में विकल्परूप वृत्तियों का समूल नाश हो जाता है तथा चौदहवें अयोगकेवली गुणस्थान दशा में अवशेष रही चेष्टारूप वृत्तियाँ भी समूल नष्ट हो जाती हैं। अतः विकल्परूप वृत्तियों के सर्वथा निरोध = क्षय से प्राप्त होने वाला वृत्तिसंक्षययोग, आत्मा को कैवल्य-प्राप्ति के फलस्वरूप सर्वज्ञत्व, सर्वदर्शित्व और जीवन्मुक्त दशा का बोधक है तथा अवशिष्ट चेष्टारूप वृत्तियों के समूलघात से उत्पन्न होने वाला वृत्तिसंक्षय, आत्मा की निर्वाण-प्राप्तिरूप है। जिसे अन्य दर्शनीय भाषा में विदेहमुक्ति कहते हैं। इस प्रकार वृत्तिसंक्षययोग के तीन मुख्य फल हैंकेवलंज्ञान-प्राप्ति, शैलेशीकरण और सर्वकर्ममुक्तिरूप मोक्ष (निर्वाण) लाभ। जिनसे मानव-जीवन के आध्यात्मिक विकास की परिपूर्णता पूर्णतया निष्पन्न होती है।'
योगदर्शनोक्त द्विविध वृत्तियों का निरोध भी वृत्तिसंक्षययोग से 'पातंजल योगदर्शन' में क्लिष्ट और अक्लिष्ट दोनों प्रकार की वृत्तियों के पाँच-पाँच प्रकार बताए हैं। क्लिष्ट वृत्तियाँ हैं-अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश। इसी प्रकार अक्लिष्ट वृत्तियाँ भी पाँच प्रकार की हैं-प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति। इन दोनों प्रकार की वृत्तियों का समावेश पूर्वोक्त विकल्परूपा और चेष्टारूपा में हो जाता है।२ . पिछले पृष्ठ का शेष
परिस्पन्दनरूपाश्च शरीरादिति। ततोऽन्यसंयोगे या वृत्तयः (त्रिविधयोग व्यापाराः) वासां यो निरोधस्तथा तथा-केवलज्ञानलाभकालेऽयोगिकेवलिकाले च। अपुनर्भावरूपेणपुनर्भवन-परिहाररूपेण। स तु पुनः तत्संक्षयो-वृत्तिसंक्षयो मत इति।
-योगबिन्दु ३६६ टीका, पृ. ६३ (ख) 'जैनागमों में अष्टांगयोग' से भाव ग्रहण १. (क) अन्यसंयोगवृत्तीनां यो निरोधस्तथा तथा। अपुनर्भावरूपेण स तु तत्संक्षयो मतः॥
-योगबिन्दु ३६६ (ख) विकल्प-स्पन्दरूपाणां वृत्तीनामत्यजन्मनाम्। __अपुनर्भावतो रोधः, प्रोच्यते वृत्तिसंक्षयः॥ -योगभेद द्वात्रिंशिका २५
(ग) 'जैनागमों में अष्टांगयोग' से भाव ग्रहण, पृ. २२ २. वृत्तयः पंचतम्यः क्लिष्टाऽक्लिष्टाश्च। अविद्याऽस्मिता रागद्वेषाभिनिवेशाः, पंचक्लेशाः। . प्रमाणविपर्यय-विकल्प निद्रा-स्मृतय।
__-योगदर्शन १/५, ६, २/३
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