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________________ ३ कषायों और नोकषायों का प्रभाव और निरोध कषाय और नोकषाय क्या हैं ? वे क्या अनिष्ट करते हैं ? कषाय और नोकषाय ये दोनों ही जन्म-जन्मान्तर से आत्मा के साथ लगे हुए हैं, इनका मन में पूर्वकर्मवश उदय होते ही अगर अकषाय-संवर और कर्ममुक्ति की साधना करने वाला सावधान - जाग्रत न रहे तो ये कषाय और नोकषाय संसार के जन्म, जरा, मृत्यु, व्याधि - आधि-उपाधिरूप दुःखों में बार-बार भटकाते हैं । " उसे अगणित जन्मों तक सद्द्बोधिलाभ नहीं मिल पाता और न ही कषाय- नोकषायों का उपशम, क्षय या क्षयोपशम करने के लिए कोई प्रेरक निमित्त ही मिल पाता है । फलतः कषायों और नोकषायों के बार-बार आक्रमण के कारण मोहमूढ़ हिताहित विवेकशून्य बना हुआ जीव बार-बार पराजित और विराधक होकर विविध गतियों और योनियों में चक्कर खाता रहेगा । इसीलिए 'बृहत्कल्पसूत्र' में कहा गया है - " जो कषायों और नोकषायों का उपशमन कर लेता है, वही आराधक है; जो इनका उपशमन नहीं करता, वह विराधक है, क्योंकि श्रमण संस्कृति का सार उपशम है ।"२ 'दशवैकालिक निर्युक्ति' में कहा गया है - " श्रमण धर्म का अनुचरण करते हुए जिस साधक के क्रोधादि कषाय उत्कट हैं, उसका श्रमणत्व वैसा ही निरर्थक है, जैसा कि ईख का फूल। तथा जिस तपस्वी ने कषायों को निगृहीत नहीं किया, वह बाल तपस्वी है। उसके द्वारा तपरूप में किये गये सभी काय कष्ट हस्ति - स्नान की १. (क) चारित्र - परिणाम-कर्षणात् = घातनात् कषायः । - राजवार्तिक ९/७/११/६०४ (ख) क्रोधादि - परिणामः कषति हिनस्ति आत्मानं कुगति-प्रापणादिति कषायः । -वही ६/४/२/५०८ (ग) सुह-दुक्खं बहुसस्सं कम्मखित्तं कसेइ ( जोतते हैं), संसारगदी - मेरं (मेंडरूप) तेण कसाओ त्तिणं विंति । - पंचसंग्रह (प्रा.) १/१०९ २. जो उवसमइ अत्थि तस्स आराहणा, जो न उवसमइ, नत्थि तस्स आराहणा Jain Education International - बृहत्कल्पसूत्र तथा कल्पसूत्र, खण्ड ४ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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