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*HAMAKArrrrrrrrrrrrrrrrrr शीघ्र मुक्ति का सर्वोत्तम उपाय :
अविपाक निर्जरा
संसार बंधनों से बद्ध आत्मा क्या कभी मुक्त हो सकता है ? कर्मशास्त्र इस तथ्य को बार-बार दुहराता है कि जब तक व्यक्ति कर्म से बद्ध है, तब तक वह संसार के बन्धनों से. बद्ध है। क्या कभी आपने यह सोचने का प्रयत्न किया है कि जीवन-यात्रा में कदम-कदम पर आपको दुःख की अनुभूति क्यों होती है? यह दुःख कहाँ से और क्यों आता है ? क्रोध आने पर आप शान्त क्यों नहीं रह पाते? अभिमान आने पर विनम्र क्यों नहीं रह पाते? लोभ आने पर संतोष को धारण क्यों नहीं कर पाते? मन में कुटिलता और वक्रता आने पर सरलता को क्यों नहीं अपना पाते? यह भी सत्य है कि इष्ट संयोगों और पदार्थों पर हमने राग किया और अनिष्ट और प्रतिकूल संयोगों और पदार्थों पर हमने द्वेष किया। राग, द्वेष के तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, कपट और अहंकार के तूफानी झंझावातों में हम अध्यात्मभावों की रक्षा क्यों नहीं कर पाते?
इसीलिए अध्यात्मवादियों के सामने यह ज्वलन्त प्रश्न है कि इस अनन्त संसार में क्या आत्मा काम, क्रोध, लोभ, मद, मत्सर, मोह, राग, द्वेष आदि विकारों से कभी मुक्त नहीं हो सकेगा? क्या यह आत्मा संसार के सुख-दुःख की अँधेरी गलियों में ही भटकता रहेगा? क्या वह जन्म-मरण के इस अनन्त संसार-सागर के प्रवाह में डूबता-उतराता ही रहेगा; कभी सदा के लिए पार नहीं हो सकेगा? क्या संसार के इस भवबन्धन में ही आत्मा सदा चक्कर खाता रहेगा, इस चक्र को तोड़कर कभी सदा के लिए मुक्त नहीं हो सकेगा? कुछ दार्शनिकों का मत : जन्म-मरण चक्र से आत्मा
कभी मुक्त नहीं हो सकेगा . कुछ दार्शनिक ऐसे रहे हैं, जिनका यह विश्वास था कि यह आत्मा अनन्तकाल से संसार में ही रहता आया है और भविष्य में भी संसार में ही रहेगा। जन्म-मरण का यह चक्र कभी नहीं टूटेगा। आत्मा अपने अशुभ कर्मों के कारण कभी नरक में जाता है, तो शुभ कर्मों के कारण कभी स्वर्ग में जाता है। अपने पुण्य और पाप की न्यूनाधिकता के कारण कभी स्वर्गलोक में, कभी मनुष्यलोक में तो कभी
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