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ॐ ४६० * कर्मविज्ञान : भाग ७ ॐ
अतः इन्द्र फिर इस जिज्ञासा को लेकर प्रजापति के पास आया और मनःसमाधान चाहा। तपश्चरण के आदेश के पालन करने के बाद प्रजापति ने उसका पुनः यथातथ्य समाधान किया। फिर भी पूरा समाधान न होने से इन्द्र चौथी बार श्रद्धा, भक्ति एवं विनय सहित जिज्ञासुभाव से उपस्थित हुआ। उसकी प्रबल जिज्ञासा, . श्रद्धा और उत्सुकता देखकर प्रजापति ने प्रसन्नतापूर्वक कहा-'इन्द्र ! यह शरीर आत्मा नहीं है। शरीर तो आत्मा का क्षणिक् निवास स्थान है। जब तक आत्मा शरीर से आबद्ध है, तब तक इसका सम्बन्ध वांछनीय सुख-दुःख या अच्छाई-बुराई से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है। किन्तु यह सम्बन्ध शाश्वत नहीं है। जैसे दर्पण के आगे से मुख फेर लेने पर शरीरगत मुख का प्रतिबिम्ब नहीं रहता, वैसे ही मृत्यु के.. बाद शरीर नहीं रहता। विभिन्न शरीर कुछ काल (आयुष्यकर्म की अवधि) तक
आत्मा को धारण करते हैं और चले जाते हैं। शरीर तो आत्मा की अभिव्यक्ति के लिये दर्पणमात्र है। शरीर से (जन्म-मरण) से सदा के लिये मुक्त होने पर आत्मा : ज्यों का त्यों रहता है। वह परम ज्योति में-अनन्त आत्मा में विलीन हो जाता हैं। वहाँ वह अपना नाम, रूप, आकार आदि सब खो देता है। इस सृष्टि का अन्तिम सत्य यह आत्मा ही है।"
इन्द्र को आत्मा से सम्बन्धित ज्ञान पाकर पूरा समाधान हो गया। वह स्वयं आत्मा के विकास में लग गया और देवों को भी उसने उसी का उपदेश दिया। तब से इन्द्र और देवगण असुरगण की तरह शरीरादि में आसक्त नहीं हुए। इसी कारण वे उच्च पदस्थ हुए और अमर कहलाए।
निष्कर्ष यह है कि जो शरीर को ही आत्मा समझकर इसे ही प्रधानता देता रहता है, वह शारीरिक सुखभोगों में निरंकुश होकर बेखटके अमर्यादितरूप से रचा-पचा रहकर अनेक पापकर्मों को न्यौता देंता रहेगा। वह आत्मा को उपलब्ध न कर पाने के कारण, शरीरादि पर मोह-ममत्व रखेगा। फलतः आत्मा के निजी गुणों से कोसों दूर हो जाएगा, आत्म-स्वरूप में, स्व-भाव में रमण करने के बदले पर-भावों-विभावों में रमण करने लगेगा। परन्तु जो इन्द्र की तरह भेदविज्ञान को यथार्थरूप से जान-समझ लेता है, वह आत्म-स्वरूप में, स्वभाव में, आत्मा के निजी गुणों में रमण कर पाता है। मन और वचन भी शरीर के ही अन्तर्गत हैं : क्यों और कैसे ? ___यों देखा जाए तो शरीर का क्षेत्र काफी विस्तृत है। मन और वचन भी तो शरीर के ही भाग हैं। मन के अन्तर्गत बुद्धि, हृदय, चित्त, मानस और अन्तःकरण का समावेश हो जाता है। मन और शरीर ऊपर से तो अलग-अलग दिखाई देते हैं, किन्तु वास्तव में इन दोनों में विशेष अन्तर नहीं है। दोनों का अस्तित्त्व एक-दूसरे
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