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8 निर्जरा, मोक्ष या पुण्य-प्रकर्ष के उपाय : विनय और वैयावृत्यतप 8 ३६१ 8
साधकों का, जो अपनी पूजा-प्रतिष्ठा, सत्कार-सम्मान, प्रशंसा आदि अपेक्षा न करके उपकार करता है, उसके उत्कृष्ट वैयावृत्यतप होता है।'' 'राजवार्तिक' में इसी तथ्य को अनावृत किया गया है-"उन आचार्यादि (दशविध मोक्षमार्ग के यात्रियों) पर व्याधि, आधि, उपाधि, परीषह, उपसर्ग, मिथ्यात्व आदि का उपद्रव होने पर उसका प्रासुक (अचित्त), औषध, आहार-पानी, उपाश्रय (आश्रयादि हेतु स्थान) तथा चौकी, तख्ता (पट्टा) और संथारिया (लम्बा आसन) आदि धर्मोपकरणों से प्रतीकार करना तथा उन्हें सम्यग्दर्शन आदि मोक्षमार्ग में दृढ़-स्थिर करना एवं उनके मनोऽनुकूल अनुकूलता तथा प्रसन्नता का वातावरण बना देना आदि भी वैयावृत्य है।
वैयावृत्य के पात्रों और पूर्वोक्त सेवापात्रों में अन्तर वैयावृत्य के उपर्युक्त अर्थों, लक्षणों और परिभाषाओं को देखने से भी वैयावृत्य और पूर्वोक्त सेवा का अन्तर स्पष्टया समझ में आ जाता है। रत्नत्रयरूप मोक्ष की आराधना में अहर्निश संलग्न जो दशविध वैयावृत्य योग्य साधक हैं या
१. (क) दव्वेण भावेण वा जं अप्पणो परस्स वा उवकारकरणं ते सव्वं वेयावच्चं।
___-निशीथचूर्णि ६६०५ (ख) वैयावृत्यम्-भक्तादिभिः धर्मोपग्रह-कारित्वे, वस्तुभिरुपग्रहकरणे।
-स्थानांग टीका ५/१ (ग) व्यापत्ति-व्यपनोदः पदयोः संवाहनं च गुणरागात्। .. वैयावृत्यं यावानुपग्रहोऽन्योऽपि संयमिनाम्।
-र. क. था. ११२ (घ) गुणवद् दुःखोपनिपाते निरवद्येन विधिना तदपहरणं वैयावृत्यम्।
-सर्वार्थसिद्धि ६/२४/३३९/३ (ङ) कायचेष्टया द्रव्यान्तरेण चोपासनं वैयावृत्यम्।
-वही ९/२०/४३९/७ : । (च) व्यापृते यत्क्रियते तद् वैयावृत्यम्।
-धवला ८/३/४१/८८ व्यापादे यत्क्रियते तद् वैयावृत्यम्।
वही १३/५-४/२६/६३ (छ) कायपीड़ा-दुष्परिणाम-व्युदासार्थं कायचेष्टया द्रव्यान्तरेणोपदेशेन च व्यावृत्तस्य यत्कर्म ___तद् वैयावृत्यम्।
-चारित्रसार १५०/३ (ज) जो उवयरदि जदीणं उवसग्गजराइ खीणकायाणं।
पूयादिसु निरवेखं वेज्जावच्चं परं तस्स॥ -कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गा. ४५९ (झ) तेषामाचार्यादीनां व्याधि-परीषह-मिथ्यात्वाद्युपनिपाते प्रासुकौषधि-भक्त-पान-प्रतिश्रय
पीठ-फलक-संस्तरणादिभिर्धर्मोपकरणैस्तत्प्रतीकारः सम्यक्त्वे प्रत्यवस्थानमित्येवमादि वैयावृत्यम्। बाह्यस्यौषध-भक्त-पानादेरसम्भवेऽपि स्वकायेन श्लेष्म-सिंघाणकाद्यन्तर्मलापकर्षणादि तद्-आनुकूल्यानुष्ठानं च वैयावृत्यमिति कथ्यते।
-राजवार्तिक ९/२४/१५-१६/६२३/३१
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