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ॐ प्रायश्चित्त : आत्म-शुद्धि का सर्वोत्तम उपाय ® ३१५ *
अभिवर्धन से पहले आत्म-शोधन करना अनिवार्य यदि तपःसाधक वर्तमान में तथाकथित गुरुओं द्वारा बताये हुए बिना सम्यग्ज्ञान के ही परम्परागत युगबाह्य क्रियाकाण्डों या आसन उपासना-पद्धतियों को अपना लेता है या सिद्धियों, लब्धियों के चक्कर में पड़कर आत्मिक-परिशोधन की बात को तथा तप से सर्वकर्ममुक्तिरूप मोक्ष के लक्ष्य को भूल जाता है, अर्थात् आत्मिक-अभिवृद्धि से पूर्व आत्मिक-परिशुद्धि के सिद्धान्त की उपेक्षा कर बैठता है तो उसे अपनी आत्म-गुणों की प्राप्ति की साधना में निराशा ही पल्ले पड़ती है। शीघ्र सफलता प्राप्त करने की धुन में प्रायश्चित्त द्वारा आत्म-शुद्धि की प्रक्रिया पूरी न करके जो तपःसाधक आतुरतापूवर्क बाह्याभ्यन्तरतप करता जाता है, उसका वह लक्ष्यहीन पुरुषार्थ सफलता प्राप्त नहीं कराता, व्यर्थ चला जाता है। जो किसान बीज बोने से पहले भूमि को भलीभाँति जोतकर समतल, मुलायम नहीं बनाता, उसमें पड़े हुए कंकड़-पत्थर नहीं हटाता तथा खरपतवार उखाड़कर नहीं निकालता, भूमि को सींचकर नरम नहीं बनाता या यथायोग्य खाद नहीं देता, अर्थात् भूमि-शोधन करने का पुरुषार्थ न करके सीधे ही उसमें बीज डाल देता है या शीघ्र फसल पाने के लोभ में भूमि-शोधन के श्रम को निरर्थक समझता है, तो उस किसान को उस भयंकर भूल का नतीजा भी मिलता है। बाद में उसे बीज भी व्यर्थ गँवा देने की निराशा पल्ले पड़ती है। यही बात आत्मा के अभिवर्धन से पूर्व आलोचना, प्रतिक्रमण, निन्दना (पश्चात्ताप), गर्हणा आदि प्रायश्चित्त तपश्चरण द्वारा आत्मा की विशुद्धि अर्थात् कर्मनिर्जरा द्वारा आत्म-शोधन की प्रक्रिया पूरी न करने वाले और उतावल में अन्यान्य आत्म-साधना करने वाले साधक के विषय में समझनी चाहिए। अतः आत्म-गुणों के अभिवर्धन से पूर्व आत्म-परिशोधन के लिए प्रायश्चित्त तपश्चरण अनिवार्य है।
प्रायश्चित्त का अर्थ और स्वरूप प्रायश्चित्त का अर्थ है-पापों की विशुद्धि करना। धर्मसंग्रह में प्रायश्चित्त की परिभाषा इस प्रकार की गई है
“प्रायः पापं विनिर्दिष्टं, चित्तं तस्य विशोधनम्।" प्रायः का अर्थ है-पाप और चित्त का अर्थ है-उसका विशोधन करना। अतः प्रायश्चित्त की परिभाषा हुई-पाप की शुद्धि करने की क्रिया। एक अन्य आचार्य ने कहा है-प्रायः अपराध का नाम है और चित्त है-उसकी शुद्धि। जिस क्रिया से अपराध की शुद्धि हो, उसे प्रायश्चित्त कहते हैं। प्राकृत भाषा में उसे 'पायच्छित्त' कहा जाता है। उसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है
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