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________________ सकामनिर्जरा का एक प्रबल कारण : . सम्यक्तप ये चीजें तपने पर ही सारभूत, परिष्कृत और उपयोगी बनती हैं आकाश में चमकने वाला सूर्य पृथ्वी को तपाता है। पृथ्वी जब तपकर पक्की हो जाती है, तभी वर्षा होने पर, उस पर बोये जाने वाले बीजों से अन्न आदि उत्पन्न - होते हैं, संजीवनी औषधियाँ उत्पन्न होती हैं, वृक्षों में मधुर रसीले फल, फूल आदि लगते हैं। सूर्य के तपने से यह समग्र सृष्टितंत्र व्यवस्थित रूप से चलता है। इसी प्रकार जीवन का यह तंत्र भी तपने से तेजस्वी एवं सुख-शान्ति और . आनन्द के मधुर फल प्राप्त करता है। तप के द्वारा संचालित जीव का तन, मन, बुद्धि, हृदय आदि सभी ओजस्वी, तेजस्वी, सक्रिय एवं प्राणवान् बनते हैं, ऊर्जा-शक्ति बढ़ती है। तपाने से वस्तुएँ गर्म होती हैं, उनका संशोधन होता है, उनमें से कचरा, गंदगी या निःसार वस्तुएँ निकल जाती हैं। वे सारभूत और सुदृढ़ (ठोस) बन जाती हैं, उनका मूल्य और स्तर भी बढ़ जाता है। वस्तुओं की तरह व्यक्ति भी तन, मन, इन्द्रियों या अंगों को विधिपूर्वक तपाने यानी समभावपूर्वक कष्ट सहने से परिष्कृत, सुघड़ एवं सुदृढ़ बनता है। कच्ची मिट्टी से बनी ईंटों से निर्मित मकान वर्षा के पानी से गलकर ढह जाता है, इसीलिए समझदार गृहस्थ आग में पकी हुई ईंटों से मकान बनाता है, जो वर्षों तक चलता है। चूना और सीमेंट तभी पक्के बनते हैं, जब कंकड़-पत्थरों के चूरे को आग में पकाते हैं। इन्हें पकाये जाने पर ही उनमें ईंटों को पकड़ लेने तथा भवन को चिरस्थायी बनाने की शक्ति पैदा हो जाती है। खान में से धातुएँ मिट्टी मिली हुई कच्ची अवस्था में निकलती हैं। उन्हें भट्टी में तपाया जाता है, तभी ताँबा, लोहा, पीतल आदि धातुएँ शुद्ध बनती हैं और विविध उपयोगों में आती हैं। लोहे को आधक मजबूत बनाने के लिए उसे अत्यधिक तेज आँच से तपाया जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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