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* २३० कर्मविज्ञान : भाग ७
अनिच्छापूर्वक ब्रह्मचर्यादि पालने वाली महिलाएँ भी अकामनिर्जरा से युक्त
इसी प्रकार वे महिलाएँ भी अकामनिर्जरा वाली होती हैं जो बाल-विधवा या परित्यक्ता हैं अथवा पति के गुम हो जाने से, पीहर या ससुरकुल में अनिच्छा से, लोकलाज से कष्ट सहती हैं, शृंगारादि से रहित रहती हैं, विकृतिजन्य खाद्य-पे का त्याग करती हैं तथा अल्पइच्छा, अल्पारम्भ, अल्पपरिग्रह से युक्त हैं एवं वे अनिच्छा से ब्रह्मचर्य - पालन करती हैं। इन और इस प्रकार की नारियों का आचार-व्यवहार प्रायः कुरूढ़िगत एवं अज्ञानयुक्त होता है। फलतः उनका आचार सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप से युक्त मोक्षलक्षी न होने से उनके अकामनिर्जरा होती है। अतएव वे चौंसठ हजार वर्षों की स्थिति वाले व्यन्तर देवों में उत्पन्न होती हैं, किन्तु अनाराधक होती हैं । '
तथाकथित कान्दर्पिक श्रमण : अकामनिर्जरा से युक्त अनाराधक
इसके साथ ही अकामनिर्जरा के सन्दर्भ में यह भी सूचित किया गया है कि जो अमुक ग्राम, नगर आदि में प्रव्रजित तथाकथित श्रमण कान्दर्पिक (कामवासना - उत्तेजक), कौत्कुच्यकारी (भांड, नट या विदूषक) मौखर्यशील (अधिक बोलने वाले), गीतरतिप्रिय या नृत्यशील होते हैं, वे अपने इस प्रकार के व्यवहार से विचरण करते हुए, बहुत वर्षों तक श्रामण्य - पर्याय में रहते हैं, अन्तिम समय में अपने इन दोषों का आलोचना - प्रतिक्रमण किये बिना ही यथाकाल कालधर्म प्राप्त करके उत्कृष्टतः सौधर्मकल्प देवलोक में कान्दर्पिक देवों में उत्पन्न होते हैं। अपनी कर्ममुक्तिलक्षी आत्म-शुद्धि की दृष्टि से विहीन होने से ऐसे श्रमण अकामनिर्जरा कर पाते हैं, अनाराधक होते हैं।
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वा करित्त । इत्थि कहाइ वा एयारूवेण विहारेणं विहरमाणा १. संजाओ इमाओ
वारगा सडंगवी, सट्ठितंत-विसारया संखाणे जो सामणे, अण्णेय बंभण्णएसु सत्थेसु सपरिणिट्ठिया यावि हत्था । ते णं परिव्वायगा दाणधम्मं सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणा पण्णवेमाणाविहरति । ते सिं परिव्वायगाणं णो कप्पइ सागरं वा ओगाहइत्तए आसं वा दुरूहित्तए; नडपेच्छां वा पेच्छित्तए हरियाण उप्पाडण्या अणत्थदंडं करित्तए । 'करित्त ते परिव्वायगा 'सेसं तं चेव । - औपपातिकसूत्र ३७/१२ जाव सन्निवेसेसु इत्थियाओ भवंति, तं. अंतो अंतेउरियाओ गयपइयाओ, मयपइयाओ बालविहवाओ ववगयमुफ्फगंध-मल्लालंकाराओ अण्हाणसेय जल्ल-मल-पंक- परितावियाओ ववगय-खीर - दहिणवणीय-सप्पि-तेल्ल-गुल-लोणमहु-मज्ज-मंस-परिचत्त-कयाराहाराओ अपिच्छाओ अप्पारंभाओ अप्पपरिग्गहाओ अकामबंभचेरवासेणं एयारूवेणं विहारेण विहरमाणीओ सेसं तं चेव ं (अणाराहगा ) ।
-वही ३७/८
२. से जे इमे जाव सन्निवेसेसु पव्वइया समाणा भवंति तं . - कंदप्पिया, कुक्कुइया, मोहरिया, गीय - रइप्पिया, नच्चणसीला ते णं एएणं विहारेणं विहरमाणा बहूइं वासाइं सामण्णपरियायं
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