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________________ ॐ योग्य क्षेत्र में पुण्य का बीजारोपण * १९७ * धर्माचरण नहीं कर रहा हूँ।" उसी दिन से वेदानादि पुण्य का तथा धर्म का विशेष रूप से आचरण करने लगे। इसी प्रकार वाणी से व्यक्तिगत या सामूहिक मंत्रजाप, भगवन्नाम-स्मरण, कीर्तन, स्तवन-स्तोत्र-स्तुतिपाठ आदि करने से भी पुण्यलाभ इतना ही नहीं, उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार स्तुतिपाठ से अथवा चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति (स्तव) से दर्शन (सम्यक्त्व) विशुद्धि कर लेता है तथा स्तव एवं स्तुति-मंगल से ज्ञानदर्शन-चारित्र रूप बोधिलाभ की प्राप्ति होती है। बोधिलाभ-प्राप्त जीव या तो अन्तःक्रिया (मोक्ष) को प्राप्त कर लेता है या फिर कल्प-देवलोकों में अथवा नवग्रैवेयक पंच अनुत्तरविमानों में उत्पन्न होता है। वह है-वाणी से विशिष्ट पुण्य या शुद्धोपयोग युक्त प्रयोग से सर्वकर्ममोक्ष प्राप्त होने का लाभ। (८) कायपुण्य-काया से निःस्वार्थभाव से दूसरों की सेवा करना, रक्षा करना, पाप में पड़ने से बचाना, सहायता देना, उपकार करना, सहयोग या श्रमदान करना कायपुण्य है। वृद्धों, बीमारों, अपंगों, असहायों, अशक्तों या अनाथ बालकों या साधु-महात्माओं की सेवा करने से भी कायपुण्य होता है। अपने शरीर से दूसरों के दुःखों का निवारण करना भी कायपुण्य है। लाचू मेमोरियल कॉलेज, जोधपुर के साइंस के १८ वर्षीय छात्र ओमप्रकाश मालवीय ने स्थानीय गुलाबसागर तालाब में डूबते हुए २७ लोगों को अपनी जान पर खेलकर बचाया।३ (९) नमस्कारपुण्य-वीतराग, निरंजन, निराकार, सिद्ध, बुद्ध, मुक्त तथा जीवन्मुक्त अर्हन्त परमात्मा एवं आचार्य, उपाध्याय, साधु-साध्वी, श्रमणोपासकश्रमणोपासिका तथा अन्य सम्यग्दृष्टि व धर्मात्मा आदि महान् आत्माओं को नमन-वन्दन, प्रणिपात तथा श्रद्धा-भक्तिपूवर्क नमस्कार एवं स्तुति-स्तव करने से नमस्कारपुण्य का उपार्जन होता है। नमस्कारपुण्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इससे अहंकार, मद, माया, ईर्ष्या, स्वार्थवृत्ति, तनाव, उद्विग्नता, भय, विघ्न, मरणान्तकष्ट, दुःसाध्य रोग, आधि, व्याधि, उपाधि, संकट आदि दूर होते हैं। इतना ही नहीं महापुरुषों को नमस्कार अनन्य भक्तिभावपूर्वक किये हुए नमस्कार का फल संसार-सागर से तारने-पार उतारने वाला बतलाया है। कहा भी है- "इक्को वि णमोक्कारो, जिणवर-वसहस्स वद्धमाणस्स। .. संसार-सायराओ, तारेइ नरं वा नारी वा॥" -एक नमस्कार भी भक्ति-बहुमानपूर्वक जिनवर वृषभ (श्रेष्ठ) वर्द्धमान महावीर को करने से वह उस नर या नारी को संसार-सागर से पार करने-तारने वाला बन जाता है। १. 'श्री अमर भारती' से भाव ग्रहण २. उत्तराध्ययनसूत्र, अ. २९, बोल ९, १४ ३. 'नवभारत टाइम्स' (बम्बई) दि. ५-११-७२ से भाव ग्रहण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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