________________
® १६६ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ७ *
धमकाना, झाड़ना या उपालम्भ देना क्रूरता है, सहृदयता नहीं, वह अशुभ कर्मबन्ध का कारण है, जिसके उदय में आने पर कड़वा और कठोर फल भोगना पड़ता है। __ ऑपरेशन के समय चीरा लगाने का अधिकार उसी सर्जन डॉक्टर को. होता है, जो रोगी के रोगग्रस्त विकृत भाग को निकालकर वापस टाँका लगा सके। यदि शरीर के रोगग्रस्त विकृत भाग पर चीरा लगाकर जो उसे वापस भलीभाँति सीता नहीं, रक्त को बहता ही छोड़ देता है, वह सर्जन डॉक्टर नहीं, व्यवहार में खूनी. कहलाता है। इसी प्रकार जो अधिकृत व्यक्ति भूल करने वाले व्यक्ति के प्रति हमदर्दी के साथ प्रेम से कटु और तीखे शब्दों का चीरा लगाकर सही माने में उसकी भूलरूप विकृति या व्रण को निकाल देता है, साथ ही मधुर और सहानुभूति भरे शब्दों का टाँका लगाता है, वही व्यक्ति सर्जन डॉक्टर के समान हितैषी और पर-जीवन-सृजनकर्ता अधिकारी है। केवल मर्मस्पर्शी और तीखे तमतमाते ‘शब्दों का चीरा लगाकर सामने वाले की भूल के घाव को और अधिक बढ़ा देता है, उसे सहानुभूतिपूर्वक मधुर शब्दों का टाँका लगाकर सीता नहीं, वह जीवन-सृजनकर्ता नहीं; विध्वंसकर्ता, घातक व्यक्ति है।
अतः सामने वाले के दोषरूप घाव का ऑपरेशन करके उस पर मरहम-पट्टी करने वाला व्यक्ति पहले मधुर और निश्छल शब्दों से उसके हृदय को जीत लेता है, उसके वास्तविक गुणों की प्रशंसा करके उसे बिना किसी प्रतिकार के अपनी भूल को कठोर शब्दों में कहने पर भी स्वीकार करने को बाध्य कर देता है। जो व्यक्ति यतनापूर्वक मधुर और नपे-तुले शब्दों में सामने वाले को अपनी भूल सुधारने के लिए कहता है, वह भाषा समिति का पालन करता हुआ, वाणी के शुभ योग-संवर का लाभ प्राप्त कर लेता है। अभ्याख्यान, पैशुन्य और पर-परिवाद : वाक्-संवर में अत्यन्त बाधक
इसके अतिरिक्त वाक्-संवर में विशेष बाधक हैं-अभ्याख्यान, पैशुन्य और पर-परिवाद। ये तीनों क्रमशः १३, १४ और १५वें पापस्थानक (पापकर्मबन्ध के कारण) हैं। अभ्याख्यान का अर्थ है-दूसरे पर मिथ्या दोषारोपण। पैशुन्य का अर्थ है-चुगलखोरी और पर-परिवाद का अर्थ है-दूसरे की निन्दा करना। वाक्-संवर के साधक को इन तीनों पापकर्मबन्ध के कारणों (स्रोतों) से बचना चाहिए। वह यदि अपनी जबान पर कंट्रोल रखे और दोषरोपण पैशुन्य और पर-परिवाद नामक पापो से बचे तो वाणी के शुभ योग-संवर का लाभ अनायास ही प्राप्त कर सकता है शुभ योग-संवर की उपलब्धि होने पर कदाचित् आत्म-स्वरूप में रमणता आ जाए तो सकामनिर्जरा भी हो सकती है, जो बहुत-से कर्मों का क्षय कर डालती है।
..
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org