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________________ * कामवृत्ति से विरति की मीमांसा 8 ११५ ® लज्जा से भी कामवासना पर नियत्रण सम्भव कुलीन व्यक्ति गुरु, गुरुजन या समाज की लज्जा से कामवासना पर संयम रखता है, मर्यादा-पालन करता है, ब्रह्मचर्य व्रत की प्रतिज्ञा से बद्ध होता है। प्रारम्भ में भले ही लज्जालु नर-नारी या साधक-साधिका कामवासना का दमन या शमन करते हों, किन्तु बाद में दीर्घकालिक अभ्यास होने पर कामवासना शान्त हो जाती है, वह समाधिस्थ भी हो जाता है। जैसे भवदेव ने ज्येष्ठबन्धु (भावदेव मुनि) की लज्जा से १२ वर्ष तक संयम पालन किया, किन्तु उनके दिवंगत होने पर भवदेव तुरन्त नागिला को पाने चल पड़े। परन्तु नागिला ने उन्हें युक्तिपूर्वक बोध देकर पुनः संयम में स्थिर किया। इसी प्रकार बाल्यावस्था में दीक्षित क्षुल्लक मुनि के परिणाम संयम से चलायमान होने पर उनके माता, भगिनी आदि व्यक्तियों ने प्रत्येक ने १२-१२ वर्ष उन्हें संयम में स्थिर रखे, यों कुल ६० वर्ष तक मुनिवेश में वे रहे। अन्त में राजदरबार के एक प्रसंग में उन्हें सच्चा बोध मिल गया और उन्होंने तहदिल से आत्म-कल्याण का पथ पकड़ लिया। शास्त्रों में दृष्टान्त आता है कि लज्जावश एक विधवा हुई कन्या ने ब्रह्मचर्य-पालन किया, फलतः उसे ८४ हजार वर्ष के आयुष्य वाला देवलोक मिला। यद्यपि ये मोक्ष (कर्ममुक्ति) के मार्ग नहीं हैं, फिर भी इन्हें शुभ योग-संवर या सराग संयम कहा जा सकता है। कुतूहलवृत्ति : काम की जननी कुतूहलवृत्ति भी काम की जननी है। पुरुष हो या स्त्री, दोनों को एक-दूसरे की ओर कुतूहलवृत्ति से देखना, इशारे करना, अश्लील शब्द बोलना आदि सब कामवासना से स्वयं का अधःपतन करना है। मनोनीत सत्कार्य में मन लगाने से कामवासना शान्त होती है मनुष्य यदि किसी सेवा-कार्य या परोपकार के किसी भी कार्य में अथवा वैज्ञानिकों या कलाकारों की तरह शोध कार्य में लगा रहता है, तो कामवासना से बच सकता है। ‘खाली दिमाग शैतान का कारखाना है', यह वाक्य निरर्थक नहीं है। - एक सेठ की पुत्रवधू परदेश गये हुए अपने पति के विरह में कामवासना पीड़ित हो रही थी। कामतृप्ति के लिए पर-पुरुष की इच्छा करके उसने दासी को अपना मनोरथ बताया। समझदार दासी ने उसके ससुर से यह बात कही तो अनुभवी ससुर ने अपने गृह कार्य के लिए रखे हुए नौकर-चाकर, रसोइया आदि सबको छुट्टी देकर घर के सारे काम अपनी पुत्रवधू को वात्सल्यपूर्वक सौंप दिये। घर की सारी जिम्मेवारी, चाबियाँ भी उसे सौंप दीं। फलतः पुत्रवधू पर समग्र गृहव्यवस्था का भार पड़ने से उसकी कामवासना समाप्त हो गई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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