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________________ ॐ कामवृत्ति से विरति की मीमांसा ® ९७ 8 किन्तु एक बार तो महासाधक को मोहकर्म ने पराजित कर दिया। काम-संवर की साधना के लिए दीर्घकाल अपेक्षित है, किन्तु कामोत्तेजनावश पतन के लिए एक क्षण भी काफी है। कितनी है निमित्त की चिनगारी की शक्ति ! अज्ञात मन में निहित कुसंस्कारों ने कामोत्तेजित किया लक्ष्मणा साध्वी महाशीलवती थी। उन्होंने कभी कामवासना के वशवर्ती होकर अघटित विचार नहीं किया था। किन्तु वेदमोहनीय कर्म के कुसंस्कार उनके अज्ञात मन में सोये पड़े थे। एक दिन चिड़िया-चिड़ी का मैथुन सम्बन्ध देखकर उनके मन में कामवासना की आग भड़क उठी। अतः मोक्ष द्वार के निकट पहुँची हुई उनकी आत्मा को इस मोहकर्मवश सुदीर्घ-संसार-परिभ्रमण करना पड़ा। . निमित्त ने सुकुमालिका साध्वी की कामाग्नि प्रज्वलित की सुकुमालिका साध्वी जी ने गृहस्थाश्रम छोड़ने के साथ-साथ सांसारिक कामभोगों का भी त्याग कर दिया था। किन्तु उनके अद्भुत रूप को देखकर अनेक युवक उनके आसपास मँडराने लगे। अतः उन्होंने बन्धु मुनियों की सम्मति से आजीवन अनशनपूर्वक देह त्याग का निश्चय किया। ___ अनशन के दौरान बेहोश हो जाने से उन्हें मृत समझकर उस युग की प्रथा के अनुसार उनके शरीर को उठाकर लोग जंगल में एक जगह रख आए। किन्तु वन के शीतल पवन आदि के कारण साध्वी जी के शरीर में प्राणसंचार हुआ। संयोगवश एक सार्थवाह वहाँ आ पहुँचा। वह उन्हें उठाकर अपने घर ले गया। उसने उनका साध्वी वेष उतारकर गृहस्थ वेष पहनने को दिया और भाई बनकर उनके दुर्बल शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने का प्रयत्न करने लगा। . परन्तु अशुभ कर्म के उदय से परस्पर का वह अनुराग घातक सिद्ध हुआ। एकान्त, अनुराग, आकर्षण, अतिपरिचय और अनुकूल संयोग इन कामदेव के पंच बाणों से भाई-बहन का पवित्र सम्बन्ध छिन्न-भिन्न होकर पति-पत्नी के सम्बन्ध के रूप में परिणत हो गया। इस पर से समझा जा सकता है कि निमित्तों की चिनगारियाँ कितने अल्प समय में प्रचण्ड कामाग्नि को प्रज्वलित कर सकती हैं ! अतः काम-संवर के ब्रह्मचर्य-प्रेमी साधकवर्ग निमित्त को लेशमात्र भी पास में न फटकने दे। १. 'जो जे कामकुम्भ ढोलाय ना !' (मुनि श्री चन्द्रशेखरविजय जी म.) से भावांश ग्रहण, पृ. २९-३३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004248
Book TitleKarm Vignan Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages697
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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