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कषायों और नोकषायों का प्रभाव और निरोध
सेवन करते समय सुखकारक, आपातरमणीय और बड़े मीठे लगते हैं, किन्तु इनका परिणाम बहुत ही कटु होता है। ये आत्मा के गुणों का सर्वनाश करके प्राणी को संसार में भटकाते रहते हैं । '
वेदत्रय-नोकषाय बन्ध (आस्रव) के कारण
अब हमें यह सोचना है कि ये तीनों वेद (काम) कैसे-कैसे, किन-किन कारणों से बँधते हैं ? 'राजवार्तिक' में बताया है कि अत्यन्त क्रोध के परिणाम, अतिमान, अत्यन्त ईर्ष्या, मिथ्या भाषण, छल-कपट, तीव्रराग ( आसक्ति या मूर्च्छा), परांगनागमन, स्त्रीभावों में रुचि आदि स्त्रीवेद - आस्रव (बन्ध) के कारण हैं। मन्दक्रोध, कुटिलता का न होना, अभिमान न होना, निर्लोभभाव, अल्परागभाव, स्वदार-सन्तोष, ईर्ष्यारहितभाव, स्नान ( सौन्दर्य प्रसाधन - साज-सज्जा ) गन्ध, माला आदि सुगन्धित पदार्थों के प्रति आदर न होना इत्यादि पुरुषवेद के आस्रव (बन्ध ) के कारण हैं। प्रचुर क्रोध, मान, माया, लोभ, गुप्त इन्द्रियों का विनाश, स्त्री-पुरुषों में अनंगक्रीड़ा का व्यसन, शीलव्रत - गुणधारी और दीक्षाधारी पुरुषों को बहकाना, पर-स्त्री पर आक्रमण-बलात्कार, तीव्र राग, लम्पटता, अनाचार आदि नपुंसकवेद आनव (बंध) के कारण हैं । २
वेद नोकषाय से बचने के उपाय : संवर- निर्जरा का लाभ
वेद नोकषाय कर्मबन्ध से बचने के लिए पंचेन्द्रिय-संवर का अभ्यास करना आवश्यक है। इसी प्रकार संसारानुप्रेक्षा, आम्रव-संवर- निर्जरानुप्रेक्षा आदि का एकाग्रतापूर्वक चिन्तन करना भी जरूरी है। विशेष रूप से उत्तराध्ययनसूत्र के ब्रह्मचर्य समाधि नामक अध्ययन में उक्त १० प्रकार की ब्रह्मचर्य गुप्तियों का सतत चिन्तन-मनन- अभ्यास करना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त कर्मविज्ञान के इसी भाग में 'कामवृत्ति से विरति की मीमांसा' शीर्षक निबन्ध में इस पर पर्याप्त प्रकाश
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डाला गया है। उसे पढ़कर इस नोकषाय से विरत होने से तथा आत्म-भावों में रमण करने से इस पर विजय प्राप्त की जा सकती है और कर्ममुक्ति की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है । ३
१. (क) 'मोक्ष - प्रकाश' से भाव ग्रहण
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(ख) उत्तराध्ययनसूत्र, अ. १४, गा. १३
(ग) सव्वे कामा दुहावहा ।
२. राजवार्तिक ६/१४/३/५२५/८
३. देखें - उत्तराध्ययन, अ. १६, 'ब्रह्मचर्य विज्ञान' (स्व. उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. ),
सूत्रकृतांगसूत्र का स्त्रीपरिज्ञा अध्ययन आदि ।
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- वही १३/१६-१७
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