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________________ ॐ पहले कौन ? संवर या निर्जरा ® ७७ * शत्रुपक्ष के सैनिकों का सामना करके उन्हें खदेड़ देता है अथवा उनसे लड़कर समाप्त कर देता है या पस्तहिम्मत करके उन पर विजय प्राप्त कर लेता है। इसी प्रकार संवर और निर्जरा के द्वारा आत्मा को शुद्ध, सुदृढ़ और विजयी बनाने के लिए उद्यत साधक पहले नये आते हुए कर्मशत्रुओं (आनवों) को विविध तद्योग्य संवर द्वारा रोकता है। कर्म या कर्मबन्ध या कर्मास्रव के पंच मुख्य कारणों में से किसी आस्रव को आते हुए देखकर एकदम एलर्ट (सतर्क) हो जाता है। उस समय जरा-सी भी गफलत साधक के लिए नुकसानदेह हो जाती है। गलत पटरी पर आती हुई ट्रेन सर्वप्रथम रोकी जाती है जैसे धड़धड़ाकर गलत पटरियों पर आती हुई ट्रेन को पेटवान उसकी पटरी न बदले या उसे लाल झंडी बताकर रोकने का तुरन्त प्रयत्न न करे तो सामने से उसी पटरी पर आती हुई ट्रेन से भिड़त होकर भयंकर एक्सीडेंट हो सकता है। इसी प्रकार आम्रवों से लदी हुई तीव्र गति से आती हुई गंदगी की ट्रेन को सतर्क होकर बाहोश आत्मा रोके नहीं या उसे शुद्ध संवर या शुभ योग-संवर की पटरी पर लगाए नहीं तो आत्म-गुणों से टकराकर वह आम्रवयान बहुत खतरा पैदा कर सकता है। निष्कर्ष यह है कि नये आते हुए अशुभ कर्मों को या शुभ कर्मों को भी रोकने की पहले पहल की जाए, उसके साथ ही पहले से संचित पूर्वबद्ध कर्मों को क्षय करने के लिए सतत पुरुषार्थ किया जाए, क्षमादि दस धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषहजय, उपसर्ग-सहन, चारित्र-पालन तथा बाह्याभ्यन्तर तप आदि के द्वारा आत्मा को सुदृढ़, परिष्कृत, शुद्ध, निर्मल एवं आत्म-गुणों से समृद्ध बनाकर आत्मा में पहले से घसे हए शुभाशुभ कर्मों को खदेड़ा जाए। तभी संवर और निर्जरा सच्चे माने में हो सकेंगे। पहले नये आते हुए पानी को रोकना जरूरी है एक इंजीनियर ने एक पुराने तालाब को सुखाकर शुद्ध करने का ठेका लिया। उसने देखा कि तालाब में पानी आने के नाले खुले हुए हैं, नया पानी दबादब तालाब में प्रविष्ट हो रहा है। अतः तालाब में पहले से प्रविष्ट कीचड़ से भरे गंदे पानी को वह पहले निकालेगा या नये आते हुए पानी को रोकने और बंद करने का काम पहले करेगा? स्पष्ट है कि बुद्धिमान् इंजीनियर पहले नये आते हुए पानी को प्रविष्ट होने से रोकता है। तत्पश्चात् वह पहले से तालाब में घुसे हुए कीचड़ मिले गंदे पानी को मजदूरों द्वारा विविध औजारों से बाहर निकालने का कठोर श्रम करेगा। तभी तालाब साफ, सूखा और परिष्कृत हो सकेगा। यही वह इंजीनियर करता है।
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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