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________________ ® ६८ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ६ ® पूर्वोक्त समस्याओं का समाधान भी यथार्थ नहीं वर्तमान शासनकर्ता या समाजशास्त्री अथवा समाजनेता इन मूल समस्याओं का समाधान न खोजकर या तो नारा लगाते हैं-गरीबी मिटाने का या अभावपीड़ितों को थोड़ी-सी राहत देकर उनका मुँह बंद कर देते हैं। समाजनेता भी समाज में पैदा हुई दहेज, प्रदर्शन, आडम्बर, खर्चीली प्रथाओं, विभिन्न कुरूढ़ियों एवं खोटे रीति-रिवाजों या अन्ध-विश्वासों जैसी समस्याओं का मूल न खोजकर उनको दबाने, उनकी भर्त्सना करने तथा उनके विरोध में समाचार-पत्रों में लेख लिखने या भाषण झाड़ने को ही उक्त समस्याओं का समाधान मान लेते हैं अथवा सरकार भी समाज में प्रदूषण फैलाने या दहेज, अभाव-पीड़ा, गरीबी आदि कुप्रथाओं के कारण. हत्या, हिंसा, ठगी आदि अपराध करने वालों को थोड़ा-सा दण्ड देकर समस्या का समाधान समझ लेती है। इस प्रकार ये विविध घटक समस्याओं के मूल का समाधान न खोजकर केवल पत्तों-पत्तों को सींचने जैसा काम करते हैं। ऐसा करने से न तो गरीबी एवं अनैतिकता की समस्या हल होती है, न ही विविध कुप्रथाएँ मिटती हैं। गलत रीति-रिवाज बाह्य समस्या बनकर बरकरार रहते हैं। निर्धनता की समस्या बनी रहती है। फलतः कुछ लोग अत्यधिक गरीब रह जाते हैं और कुछ लोग अत्यन्त धनाढ्य हो जाते हैं। अतः मूल समस्याओं का समाधान जब तक नहीं होगा, तब तक ये बाह्य समस्याएँ एक या दूसरे रूप में रहेंगी ही। समाधान का स्रोत : संवर, उसके पाँच घटक __मूल समस्याएँ या समस्याओं के स्रोत पाँच हैं। उन आम्रवरूप समस्याओं के पाँच घटक हैं, वैसे ही संवररूप समाधान के भी पाँच घटक हैं। एक शब्द में दोनों को कहें तो समस्या का स्रोत आस्रव है, तो समाधान का सोत है-संवर। समाधान के पाँच घटक ये हैं-(१) सम्यग्दृष्टि, (२) विरति, (३) अप्रमाद, (४) अकषाय, और (५) योगत्रय की चंचलता का अभाव। मिथ्यादृष्टि से उत्पन्न समस्याओं का एकमात्र समाधान : सम्यग्दृष्टि मिथ्यादृष्टिरूप आम्रव कितनी-कितनी दुःखद समस्याओं को उत्पन्न कर देता है, इस बात को हम पिछले पृष्ठों में समझा आए हैं। उन समस्याओं का समाधान है-सम्यग्दृष्टिरूप संवर। जब व्यक्ति का दृष्टिकोण सम्यक् हो जाता है, तब वह प्रत्येक मानसिक, वाचिक, कायिक प्रवृत्ति को आत्म-हित की, कर्मक्षय की या आगन्तुक कर्म-निरोध की दृष्टि से सोचेगा। उसमें स्वतः आत्मौपम्यभाव जागेगा, सर्वभूत-समता, सर्वपरिस्थिति-समभाव, सर्वपदार्थ-समभाव की दृष्टि से चिन्तन और जागरण स्वतः होगा।
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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