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________________ ॐ समस्या के स्रोत : आस्रव, समाधान के स्रोत : संवर ॐ ६५ * संयम में अरुचि, साधनामार्ग में नाना आशंकाएँ, महत्त्वाकांक्षाएँ आदि विकारों से घिर जाता है। कभी-कभी तो वह इतने तीव्र क्रोध, अहंकार, माया या लोभ (आसक्ति) से घिर जाता है कि उस मोहान्धकार में मनुष्य व्रत-नियमों एवं मर्यादाओं को जानते हुए भी अनजान-सा बन जाता है, मूढ़तावश रूढ़िपूजक, स्थिति-स्थापक या गतानुगतिक बन जाता है। धर्म, जाति, परम्परा, शास्त्र या महापुरुषों के नाम पर अधर्म, हिंसा, पशुबलि, नरबलि, आगजनी, हत्याकाण्ड आदि का आचरण कर बैठता है। ये वे कषायजनित समस्याएँ हैं, जो मनुष्यों में क्रोध, द्वेष, अहंकार, घृणा, वैर-विरोध, ठगी, लोभवृत्ति, कामवासना की लिप्सा, भय, परस्पर अविश्वास, नाना प्रकार के संकट, शारीरिक-मानसिक दुःख, आधि, व्याधि, उपाधि आदि समस्याएँ पैदा करती हैं। कषाय के कारण घोर पापकर्म का बन्ध करके वह इस जन्म में और अगले जन्मों के लिए नाना दुःखोत्पादक समस्याएँ पैदा कर लेता है। तीव्र कषाय के कारण वह स्थितिबन्ध और अनुभागबन्ध में वृद्धि करके अपने लिए अनेक दुःखों का पहाड़ खड़ा कर लेता है, जन्म-जन्मान्तर तक वैर-परम्परा खड़ी कर लेता है। समस्याओं की पंचम जननी : योगों की चंचलता इन सब समस्याओं का प्रवाह तीव्र गति से बहता है मन, वचन और काया की चंचलता द्वारा। दूसरे शब्दों में कहें तो पूर्वोक्त कषायों से मन, वाणी और शरीर में चंचलता पैदा होती है, जिससे इन्द्रिय, मन, वाणी और शरीर के सभी अंगोपांग द्यूत, चोरी, डकैती, लूट, हत्या, माँसाहार, मद्यपान, वेश्यागमन, पर-स्त्री/परपुरुषगमन और शिकार, दंगा-फिसाद, पथराव, आगजनी आदि तमाम दुर्व्यसनोंरूपी अनिष्टों की ओर दौड़ लगाने लगते हैं। योगत्रय की चपलता से व्यक्ति में स्वयं को जानना-देखना तथा अपने अन्तर (आत्मा) में निहित अनन्त ज्ञानादि शक्तियों को भूल जाता है, स्व में, स्व-स्वरूप में रमण करने के बजाय पर-भावों और विभावों में ही प्रायः रमण करता है, आत्म-चिन्तन, आत्म-निरीक्षण, आत्म-शुद्धि, आत्म-भावना, आत्म-ध्यान आदि की ओर उसका ध्यान जाता ही नहीं। वह या तो बहिर्मुखी-बहिरात्मा होकर जीता है, अन्तरात्मा होने पर भी कषाय और योग आम्रवों पर तथा प्रमाद आम्रव पर पूर्णतया नियंत्रण नहीं कर पाता। इन्हीं कारणों से संसार में अगणित समस्याएँ पैदा होती हैं। . ये समस्याएँ पत्तों की समस्याएँ हैं, जड़ की नहीं कुछ लोग कहते हैं, आज संसार में गरीबी की समस्या है, रोटी-रोजी, सलामती (सुरक्षा) और शान्ति की समस्या है, वेकारी और बेरोजगारी की
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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