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६४ कर्मविज्ञान : भाग ६
अविरति आस्रव से ग्रस्त व्यक्ति में सत्तालिप्सा, पदलिप्सा, धनलिप्सा, राज्यवृद्धिलिप्सा, तुच्छ-स्वार्थान्धता, पदार्थ-संग्रहलिप्सा आदि अधिकाधिक बढ़ती जाती है। इसके कारण जगह-जगह हिंसा, हत्या, दंगा, कलह, युद्ध, संघर्ष, बेईमानी, धोखेबाजी, आतंकवाद, उग्रवाद, भ्रष्टाचार, ठगी, लूट, बलात्कार, संग्रहखोरी, जमाखोरी आदि नाना प्रकार की समस्याएँ सिर उठाती हैं। व्यक्ति ईर्ष्या, द्वेष, वैर-विरोध आदि से अशान्त रहता है । उसमें तनाव का दौर बढ़ जाता है। चारित्रमोह का उदय होने पर व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाता, न ही दूसरे के लिए - दुःखित - पीड़ित होता है । वह मैत्रीभाव की रटं अवश्य लगाता है, किन्तु प्राणियों के प्रति मैत्री तो दूर की बात है, मनुष्यमात्र के प्रति भी मैत्रीभाव को ठुकराकर अवरति के प्रभाव से वह जातिभेद, प्रान्तभेद, राष्ट्रभेद, भाषाभेद, सम्प्रदायभेद, पंथभेद आदि नाना भेद-प्रभेद के बखेड़े खड़े करता है, परस्पर एक-दूसरे को लड़ाता है। 'धर्म खतरे में है' कहकर मनुष्यों के हृदयों में वैमनस्य पैदा कर देता है। समता की ओट में विषमता पैदा करता है, धर्मान्तर, सम्प्रदायान्तर आदि करके मानव-जाति में फूट के बीज बोता है। इसलिए अविरति आस्नव भी नाना समस्याओं, दुःखों, कर्मजनित कष्टों की खान है, समस्याओं का जनक है।
प्रमाद आनव : समस्याओं का विशिष्ट जनक
मिथ्यात्व और अविरति मिलकर जीव (आत्मा) के दर्शन, ज्ञान तथा चारित्र की शक्ति को कुण्ठित और आवृत करते हैं। फिर प्रमाद आस्रव के मिल जाने से मद, उन्माद, विषयासक्ति, अजागृति, असावधानी, मूढ़ता, साधना में अविवेक, साधना के प्रति अनादर, शिथिलता, आचरण में ढीलापन आदि नाना समस्याएँ पैदा होती हैं। ये समस्याएँ आध्यात्मिक जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती हैं। मनुष्य अहिंसा आदि सद्धर्म पर, समता और शमता के आत्म-धर्म पर, क्षमा आदि दशविध उत्तम धर्म पर अथवा सम्यग्ज्ञानादि रत्नत्रयरूप धर्म पर सुदृढ़, श्रद्धानिष्ठ, आचारनिष्ट एवं मर्यादा -परायण नहीं रह पाता। इससे प्राणि - जीवन में, विशेषतः समग्र मानव-जाति के जीवन में संघर्ष, हिंसा, ईर्ष्या, द्वेष, वैर-विरोध आदि पनपते हैं।
कषाय आनव : समस्याओं का अचूक उत्पादक
प्रमाद आम्रव के मिल जाने से फिर चौथा कषाय आनव उत्पन्न होता है कषाय जब जीवन में आता है तो अहिंसादि की साधना-आराधना को ठप्प कर देता है, साधना की शक्ति को कुण्ठित कर देता है। फिर मनुष्य भी दंभ, अहंकार, प्रवंचना, दूसरों से ईर्ष्या, पर-निन्दा, पैशुन्य, असंयम में रुचि,
करता हुआ