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________________ * ५४ ® कर्मविज्ञान : भाग ६ * को शान्ति से समभावपूर्वक उक्त उपसर्गों को सहने से संवर और निर्जरा हुई और अन्त में समरादित्य के भव में केवलज्ञान-केवलदर्शन, वीतरागत्व एवं मोक्ष प्राप्त हुआ। अतः ऐसे समय में जबकि कष्ट असह्य होने लगे तब अग्निशर्मा और गुणसेन के चरित्र को याद करके हिंसक प्रहार, प्रतिकार और बदला लेने के निर्णय (निदान) को कैंसिल कर दो, उस दुर्विचार को वहीं दफना दो। तभी संवर-निर्जरा-साधना में प्रगति होगी अन्यथा अग्निशर्मा की तरह आत्मा की अधोगति और दुर्दशा होगी। तीसरे मास के उपवास का पारणा टल जाने पर अग्निशर्मा का कोप और नियाणा यद्यपि अग्निशर्मा ने तापस दीक्षा लेने के पश्चात् अपने पूर्वकृत पापकर्मों को क्षय करने (निर्जरा) के हेतु मासक्षपण (एक महीने तक उपवास) तप प्रारम्भ कर दिये थे और राजा गुणसेन की आग्रहभरी प्रार्थना पर मासखमण के पारणे के दिन उसके यहाँ आहार लेने पहुंचा था। एक बार नहीं, परन्तु दो-दो बार पहुँचा। परन्तु दोनों ही बार वह आहार लिये बिना ही अपना अन्तराय कर्म का उदय मानकर गुणसेन राजा पर किंचित् भी रोष या द्वेष किये बिना लौट गया। दोनों ही बार पारणे के दिन राजा गुणसेन के यहाँ कोई न कोई अपरिहार्य कारण बन गया था। प्रथम मासक्षपण के पारणे के दिन राजा के मस्तक में असह्य पीड़ा उठी। पूरा राजकुल शोकाकुल था। तापस अग्निशर्मा को आहार देने का किसी को ध्यान न रहा। दूसरे महीने के तप के पारणे के दिन राजकुमार के जन्म-महोत्सव की खुशी में डूबा हुआ राजपरिवार उसके पारणे की बात भूल गया। गुणसेन राजा को जब पारणे की बात याद आई तो घोर पश्चात्ताप और व्यथाभरे दिल से तापस अग्निशर्मा के पास आया। चरणों में पड़कर माफी माँगी। तापस के मन में भी समताभाव लबालब भरा था। उसने गुणसेन को आश्वासन दिया, क्षमा माँगी, क्षमा दी। उपकार माना। इस प्रकार दोनों ही पारणों के समय तापस अग्निशर्मा ने द्रव्य संवर और निर्जरा के अवसर को पूरी तरह से सफल बना लिया था। ___ उसका यह कठोर नियम था कि मासक्षपण के पारणे के दिन जिस घर में सर्वप्रथम आहार के लिए जाए, उस घर से आहार न मिले तो खाली लौट आना और कहीं आहार के लिए न जाना, पारणा किये बिना ही दूसरा और तीसरा मासक्षपण तप चालू कर देना। इस अपेक्षा से तापस अग्निशर्मा के दो-दो मासक्षपण के पारणे नहीं हो सके, फिर भी तापस के मन में किसी प्रकार की अशान्ति की हलचल नहीं थी। परन्तु गुणसेन की विनती पर तीसरी बार भी अग्निशर्मा तापस १. देखें-'समराइच्च कहा' में गुणसेन और अग्निशर्मा का चरित्र
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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